मीडिया पर अनर्गल आरोप लगाकर अनचाहे ही अघोषित नाराजगी मोल क्यों लेना चाह रहे राहुल गांधी!

जो भी विपक्ष में रहता है वह मीडिया पर इस कदर तोहमत लगाता है मानो मीडिया नेताओं की जरखरीद गुलाम हो। मीडिया के द्वारा पर्याप्त कव्हरेज नहीं दिए जाने के आरोप लगभग एक दशक से केंद्र में विपक्ष में बैठी कांग्रेस के नेताओं के द्वारा लगाए जा रहे हैं। हाल ही में भारत जोड़ो न्याय यात्रा पर निकले राहुल गांधी ने भी कमोबेश इसी तरह का आरोप मीडिया में मढ़ दिया है। बिहार में एक सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि मीडिया में कभी किसान या मजदूर का चेहरा देखा है आपने!

राहुल गांधी का आरोप था कि मीडिया उनकी बात नहीं दिखातालेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मीडिया में 24घंटे नजर आते हैं। राहुल गांधी का कहना था कि नितिश कुमार भी कभी कभी दिख जाते हैं पर क्या तेजस्वी या राहुल गांधी को कभी नहीं दिखाया जाएगाक्योंकि वे दोनों मीडिया के मालिक नहीं हैं। राहुल गांधी ने अपने उद्बोधन में यह भी कहा कि सबने राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा देखीक्या उसमें एक भी गरीब या मजदूर दिखा! क्योंकि गरीब मजदूरी कर रहे हैंवे भूखे मर रहे हैं। प्राण प्रतिष्ठा में सभी अमीर लोग थे।

राहुल गांधी के सलाहकारों पर वास्तव में तरस आता है। राहुल गांधी इक्कीसवीं सदी के तीसरे दशक में इस तरह की बातें कह रहे हैं। इक्कीसवीं सदी के आरंभ होने के पहले ही सोशल मीडिया का ताना बाना बुना जा चुका था। आज सोशल मीडिया भी 25 साल से ज्यादा समय का हो चुका है। इंटरनेट जब मंहगा था उस वक्त ईमेल, ब्लाग, आरकुट के अलावा पेजर जैसे प्लेटफार्म थे, तो मोबाईल पर शार्ट मैसेज सर्विस (एसएमएस) का बोलबाला था।

आज तो दुनिया ही बदल चुकी है। अगर कोई मीडिया संस्थान किसी खबर को न दिखाए तो सोशल मीडिया के फेसबुक, कू, ट्विटर, एक्स, इंस्टाग्राम, थ्रेड्स, व्हाट्सएप, यूट्यूब और न जाने कितने प्लेटफार्म हैं जिन पर अपनी बात आप कह सकते हैं। आज आधे से ज्यादा मंत्री तो कू पर दिन भर सक्रिय रहते हैं। उनके अपडेट कू का उपयोग करने वाले लाखों लोगों तक लगातार ही पहुंचता रहता है। फेसबुक पर रील, हो व्हाट्सएप स्टेटस हो या अन्य किसी सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर पोस्ट हो हर जगह आप अपनी उपस्थित दर्ज करा सकते हैं।

इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक में वह भी 2024 में अगर इस तरह की बात कोई कह रहा है तो यह किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं माना जा सकता है। हम बार बार यही बात कहते आए हैं कि आखिर राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा के संदेश, वीडियोज, फोटोज, खबरों आदि को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी, प्रदेश कांग्रेस कमेटियो, जिला कांग्रेस कमेटियों, ब्लाक कांग्रेस कमेटियों के पदाधिकारियों के द्वारा शेयर नहीं किया जाता है। और तो और कांग्रेस की आईटी सेल भी इससे परहेज करती ही दिखती है। अगर आपको राहुल गांधी की यात्रा आज कहां है और कल कहां होगी, इस बारे में पता करना है तो निश्चित तौर पर आपको इंटरनेट पर बहुत सारा डाटा खंगालना पड़ेगा। कांग्रेस का हर एक नेता अगर ईमानदारी से कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की मंशाओं को जनता तक पहुंचाने का काम आरंभ कर दें तो कांग्रेस की गति सुधर सकती है।

कांग्रेस के नेता हों या भाजपा के अथवा किसी अन्य दलों केहर नेता अपनी बात जनता के बीच रखता हैपर जब उसी बात को पुरजोर तरीके से सक्षम मंच पर अर्थात लोकसभाराज्य सभा या विधानसभा में उठाने की बात आती है तो सदन में ये नेता मौन रह जाते हैं। या इन नेताओं के द्वारा सबसे आसान तरीका बहिर्गमन को अपना लिया जाता है। सवाल यही खड़ा है कि अगर कोई जनता के लिए कुछ करना चाह रहा हैं तो जनता के बीच जाकर उस बात को क्यों कहा जा रहा है। इसके बजाए सक्षम मंच लोकसभाराज्य सभा या विधान सभा में उस बात को कहा जाए ताकि उस पर कार्यवाही कराई जाकर जनता का हित साधा जा सके।

मीडिया पर राहुल गांधी अगर आरोप लगा रहे हैं तो निश्चित तौर पर वे यह कहना चाह रहे हैं कि मीडिया मुगल अमीर आदमी हैं और इन मीडिया मुगलों को सरकार के पक्ष में खबरों के प्रकाशन और प्रसारण के एवज में सरकारी सहायता भी मिल रही होगी। राहुल गांधी को एक मशविरा देना चाहते हैं हम कि वे मीडिया पर इस तरह के बेबुनियाद आरोप लगाकर खुद के और मीडिया के बीच में वैचारिक मतभेद पैदा करने के बजाए मध्य प्रदेश के पूर्व मंत्री और विधायक रहे बाला बच्चन के द्वारा तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्रित्व काल में मध्य प्रदेश जनसंपर्क मंत्री से विज्ञापनों का लेखा जोखा मांग लिया था। चूंकि विधायक के द्वारा प्रश्न पूछा गया था इसलिए जनसंपर्क मंत्री को पूरा लेखा जोखा सदन में रखना पड़ा। इसी तरह कांग्रेस के किसी सांसद के द्वारा अथवा स्वयं राहुल गांधी के द्वारा केंद्र सरकार के सूचना प्रसारण मंत्री से सूचना प्रसारण मंत्रालय के अधीन आने वाले विज्ञापन एवं दृश्य प्रचार निदेशालय (डीएवीपी) से मीडिया को जारी किए गए विज्ञापनों के बारे में विस्तार से जानकारी मांग ली जाती तो उन्हें अपने आरोपों पर विचार करने का मौका मिलता या वे आरोप बहुत ही ठोस आधार पर लगाने की स्थिति में होते।

राहुल गांधी मीडिया पर पक्षपात करने के आरोप क्यों लगा रहे हैं यह बात तो वे ही जानें पर मीडिया पर आरोप लगाने के पहले राहुल गांधी इस बारे में विचार जरूर करें कि बतौर सांसद उनके द्वारा लोकसभा में कितनी बार जनता के हितों पर सवाल उठाए हैंकितनी बार चर्चा की हैकितनी बार बिना चर्चा किए बिना ही बर्हिगमन कर दिया। दूसरे पर आरोप लगाना बहुत ही असान होता है पर हम खुद अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कितनी ईमानदारी से कर रहे हैं इस ओर शायद कोई ध्यान नहीं देताइसलिए . . .

लिमटी खरे

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *