विरासत में जय प्रभा मेनन ने भारतीय शास्त्रीय नृत्य मोहिनीअट्टम की प्रस्तुति दी

सुजीत कुमार ओझा की प्रस्तुतियों ने विरासत के लोगों को किया मंत्रमुग्ध

देहरादून। विरासत आर्ट एंड हेरीटेज फेस्टिवल 2022 के 14वें दिन की शुरुआत दीप प्रज्वलन के साथ हुआ एवं सांस्कृतिक संध्या कार्यक्रम में विभिन्न प्रकार कि प्रस्तुतियां हुई। जिसमें पहली प्रस्तुति हरियाणा से आए हुए कलाकार प्रेम हरियाणा ने दी, उन्होंने हरियाणा के शास्त्रीय नृत्य प्रस्तुत किया जो भोले बाबा की स्तुति में था और इसके बोल थे “तू राजा की राजदुलारी “ उसके बाद उन्होंने  2 रागनी प्रस्तुत की जिसमें उन्होंने “ कन्या हत्याकांड “ और “ कैसे एक फौजी की पत्नी अपने पति से दूर रहती है “ इस प्रस्तुति ने मौजूद सभी दर्शकों के आंखों को नम कर दिया। इसके बाद उन्होंने अपने हरियाणा के शास्त्रीय नृत्य खोडिया से प्रस्तुति को समाप्त किया। उनकी संगत में ढोलक पर (गोविंदा ) हारमोनियम ( हिमांशु ) नगांड़ा (सुरेंद्र) संगीत ( अंकित ,हिमांशु ,मनीषा , तर्क) ने साथ दिया एवं प्रस्तुति को और शानदार बना दिया।
सांस्कुतिक संध्या कार्यक्रम में अगली प्रस्तुति सुजीत कुमार ओझा की हुई जिसमें उन्होंने बिहार के लोक संगीत प्रस्तुत किया। उनकी भक्ति संगीत की प्रस्तुति ने विरासत के लोगो को मंत्रमुग्ध कर दिया। उन्होंने अपनी प्रस्तुति की शुरुवात सगुण भक्ति से निगुन भक्ति की ओर की जिसमे पहले गायन के बोल“आज गोपाल रास“ थे। उसके बाद “मन री कर ले “,“हमन है इसी मस्ताना“,“राम राम सेतु “जैसे कई भक्ति गानों पर प्रस्तुतियां दी। उन्होंने अपनी प्रस्तुति का समापन “ मोको कहा ढूंढे री बंदे“ से किया। उनके संगत में चेतन निगम (हारमोनियम), गुरबेश (तबला), अनुरोध जैन (एंड परकशन), संकल्प तिवारी,दक्ष वर्मा (वोकल), ऋषभ जोशी, नितिन वर्मा (तानपुरा) ने दिया।
हम सभी जानते हैं कि बिहार की मिट्टी में आत्मा का संगीत है और ’सुजीत कुमार ओझा’ इसका एक सच्चा उदाहरण है। 1977 में जन्मे सुजीत ने स्वाभाविक रूप से आठ साल की उम्र में संगीत की ओर रुख किया। तब से वह लोक संगीत की कई प्रस्तुतियों में मंच पर दिखाई देने लगे। अपने पहले गुरु और दादा श्री भगवान जी ओझा द्वारा लोक संगीत में दीक्षित होने के बाद। बाद में उन्होंने श्री ओम प्रकाश राय, श्री धर्मपाल से शास्त्रीय संगीत सीखना शुरू किया। पिछले दस वर्षों से, वे प्रसिद्ध गायक और गंधर्व महाविद्यालय, नई दिल्ली के प्रधानाचार्य पद्मश्री पंडित मधुप मुद्गल के संरक्षण में हैं। वह दिल्ली विश्वविद्यालय से संगीत में स्नातक हैं।
उन्हें डीडी-1 पर सुबाह सवेरे और डीडी-भारती, ईटीवी आदि पर अन्य कार्यक्रमों में चित्रित किया गया है। लाइट और शास्त्रीय संगीत (खयाल, भजन, गजल आदि) उनकी विशेषता होने के कारण, वे लोक संगीत और भजन दोनों में शानदार हैं। एक अच्छे गीतकार के अलावा, सुजीत ने हिंदी, भोजपुरी और पंजाबी आदि में कई फिल्मों और एल्बमों के लिए संगीत निर्देशन के साथ-साथ संगीत भी तैयार किया है। सुजीत ओझा ने वर्ष 1999 में ’आर्य रत्न’ पुरस्कार भी प्राप्त किया है। 2003 में बाबा अलाउद्दीन खान पुरस्कार और ’संगीत’ 2011 में साधक सम्मान। इसके अलावा पिछले सत्रह साल से प्रसिद्ध गंधर्व गाना बजानेवालों के एक सक्रिय सदस्य के अलावा। उन्होंने बोस्टन, ह्यूस्टन, वाशिंगटन, मैनचेस्टर, लंदन, बर्मिंघम, लिवरपूल, दुबई, जर्मनी, आदि कई कार्यक्रमों में प्रदर्शन किया और प्रशंसा प्राप्त की है। सांस्कृतिक संध्या कार्यक्रम के अगली प्रस्तुति में जय प्रभा मेनन द्वारा मोहिनीअट्टम नृत्य प्रस्तुत किया गया। जिसमें उन्होंने अपनी प्रस्तुति की शुरुवात नटराज स्तुति अभिनय दर्पण “नृत्या“,कंबोज ताल में किया। उसके बाद उन्होंने नगत्तवम में “कुंडलिनी पांडव“जहां वे नागा राजा को आने और शिव को नृत्य करने के लिए आमंत्रित कर रहे हैं। इसके बाद उन्होंने महाकवि कालिदास ’ऋतुसंहार’ से “वर्षाअहमान“ का प्रदर्शन किया। इसमें बारिश में प्रकृति के कायाकल्प को दर्शाया गया है, जो अपने प्रियजनों को याद कर रहे हैं उन्हें छोड़कर सब कुछ खुश है। यह आदि तालम में राग अमृतवर्षिणी में रचित है। उनका अंतिम प्रस्तुति “बंदट्टम“ था जहां आप एक बच्चे के रूप में भगवान के साथ खेलते हैं और सीखते हैं कि कैसे खुश रहना है। जयप्रभा जी के साथ रोहिणी सतीश, अपर्णा संजीव, रमिता राजेश, पुण्य नायर और राधिका मेनन थीं।
जयप्रभा मेनन असाधारण कलात्मकता के साथ एक नर्तकी, एक बहुमुखी कोरियोग्राफर और अपने शिष्यों के लिए एक स्नेही गुरु हैं, उन्होंने भारतीय शास्त्रीय नृत्यों को एक अनूठा आयाम दिया है। मोहिनीअट्टम का शाब्दिक अर्थ ’मोहिनी’ के नृत्य के रूप में है, जो हिंदू पौराणिक कथाओं की दिव्य जादूगरनी है, केरल का शास्त्रीय एकल नृत्य रूप है।अपने सभी सुंदर लहराते वृत्ताकार स्टेप, प्रमुख भावों और सुमधुर पारंपरिक संगीत के साथ, मोहिनीअट्टम की कला को हमेशा उस सम्मान और प्रशंसा का आनंद नहीं मिला जो अब मिलता है। मोहिनीअट्टम नृत्यांगना और प्रतिपादक जयप्रभा मेनन ने नृत्य को उसका हक दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जयप्रभा मेनन नई पीढ़ी की सबसे कुशल नर्तकियों में से एक हैं। उनकी मनभावन मंचीय उपस्थिति और आकर्षक प्रस्तुति ने मोहिनीअट्टम में एक नया सौंदर्यशास्त्र ला दिया है। भले ही वह परंपरा में निहित है, उसके विषय समकालीन हैं और व्याख्या साहसिक और उपन्यास है। वह पारंपरिक अनुशासन के साथ अपने नृत्य में एक ताजा मौलिकता का मिश्रण करती है। वर्तमान में पद्मभूषण श्री कवलम नारायण पणिक्कर के मार्गदर्शन में केरल के क्षेत्रीय ताल पैटर्न पर शोध कर रही हैं।
सांस्कृतिक संध्या की आखरी प्रस्तुति प्रसिद्ध तबला वादक सलीम अल्लाहवाले के समूह (तालसाप्तक) ने दी। जिसमें उन्होंने दिल्ली, बनारस, पंजाब, फर्रुखाबाद, अजरला, लखनऊ धराने के तबला वादन को प्रस्तुत किया। उन्होंने उसके बाद कुछ उत्तराखंड के लोकसंगीत को शास्त्रीय संगीत के संग विलय कर लोगो के लिए प्रस्तुतियां दी जिससे विरासत में मौजूद लोंगो ने खुब पसंद किया और तालिया बजाई। इस अदभुत प्रस्तुतियों में कंपोजर सलीम अल्लाहवाले के साथ अल्लाहवाले परिवार से तबला वादक नईम, मोइन, सामी, साउलात, असीम अल्लाहवाले एवं जाकिर हुसैन (सारंगी) ने जुगलबंदी कर लोगो की खूब प्रसंशा एवं तालियां बटोरी। उनकी खासियत लोकधुन को शास्त्रीय बंदिश से मिलना है जो 400 साल पुराना घराना है एवं उनके उस्ताद दद्दू खान जी, हाजी अमीर मोहद खान जी, इनाम अली खान साहेब जी द्वारा बनाया गया है। सभी कलाकारों को दुरदर्शन एवं ए आई आर द्वारा ग्रेड ए धोषित किया गया है।

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