कोरोना वायरस से कच्चे तेल की कीमतों में ऐतिहासिक गिरावट

वाशिंगटन । अमेरिकी कच्चे तेल की कीमतों में सोमवार को ऐतिहासिक 105 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई और पहली बार तेल की कीमतें नेगेटिव 2 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गई। वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (डब्ल्यूटीआई) के मई वितरण में 300 प्रतिशत से अधिक की गिरावट दर्ज की गयी। कोरोना वायरस संकट की वजह से दुनियाभर में घटी तेल की मांग के चलते इसकी कीमतें लगातार गिर रही हैं और इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है जब अमेरिकी कच्चे तेल की कीमत इतनी नीचे पहुंची है।
रिस्ताद एनर्जी के प्रमुख ब्योर्नार टोनहुगेन ने कहा,वैश्विक आपूर्ति की मांग में कमी की समस्या की वजह से तेल की कीमतों में वास्तविक तौर पर गिरावट आने लगी है। कोरोना के खतरे के कारण विश्व के अधिकतर देशों में लगाए लॉकडाउन के कारण तेल की मांग में भारी कमी आयी है जिसके चलते तेल कंपनियों के भंडार पूरी तरह से भर चुके है।
भारत कच्चे तेल का बड़ा इंपोर्टर है। खपत का 85 फीसदी हिस्सा आयात के जरिए पूरा किया जाता है। ऐसे में जब भी क्रूड सस्ता होता है तो भारत को फायदा होता है। तेल जब सस्ता होता है तो आयात में कमी नहीं पड़ती बल्कि भारत का बैलेंस ऑफ ट्रेड भी कम होता है। रुपये को फायदा होता है, डॉलर के मुकाबले उसमें मजबूती आती है और महंगाई भी काबू में आ जाती है। जाहिर है जब बाहर से सस्ता कच्चा तेल आएगा तो घरेलू बाजार में भी इसकी कीमतें कम रहेंगी।
कच्चे तेल के दाम में 1 डॉलर की कमी का भारत को कितना फायदा?
कच्चे तेल के भाव में जब एक डॉलर की कमी आती है तो भारत के आयात बिल में करीब 29000 करोड़ डॉलर की कमी आती है। यानी 10 डॉलर की कमी आने से 2 लाख 90 हजार डॉलर की बचत। सरकार को इतनी बचत होगी तो जाहिर है पेट्रोल-डीजल और अन्य फ्यूल के दाम पर असर पड़ेगा।
जब कच्चे तेल के दाम गिरते हैं तो पेट्रोलियम प्रॉडक्ट्स के दाम में भी गिरावट दर्ज की जाती है। यानी पेट्रोल और डीजल सस्ते हो सकते हैं। कच्चे तेल के दाम में एक डॉलर की कमी का सीधा-सीधा मतलब है पेट्रोल जैसे प्रॉडक्ट्स के दाम में 50 पैसे की कमी। इसी तरह यदि क्रूड के दाम 1 डॉलर बढ़ते हैं तो पेट्रोल-डीजल के भाव में 50 पैसे की तेजी आना तय माना जाता है।

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