76वें वार्षिक निरंकारी संत समागम की तैयारियाँ जोरों पर

देहरादून। संत निरंकारी आध्यात्मिक स्थल समालखा में निरंकारी मिशन का 76वां वार्षिक संत समागम, पिछले 75 वर्षों की भांति इस वर्ष भी भव्यतापूर्वक दिनांक 28, 29 एवं 30 अक्तूबर को सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज एवं निरंकारी राजपिता के पावन सान्निध्य में आयोजित होने जा रहा है। इस समागम का भरपूर आनंद विश्वभर से आये हुए सभी निरंकारी भक्त एवं श्रद्धालुओ द्वारा प्राप्त किया जायेगा। इस शुभ सूचना से संपूर्ण निरंकारी जगत में अत्यंत उत्साह का वातावरण है जहां हर प्रांत से आये हुए भक्त अपने हृदय में ‘वसुदैव कुटुम्बकम्ब’ का सुंदर भाव लिए हुए एक विस्तृत परिवार के रूप में सतगुरु के साकार दर्शन एवं उनकी दिव्य वाणी को श्रवण करेंगे। निसंदेह यह स्वयं में एक अलौकिक नजारा होगा जहां पर सभी जनमानष अपनी भाषा, जाति, धर्म एवं वर्ण को भुलाकर ‘एकत्व’ के दिव्य संदेश को वास्तविक रूप में चरितार्थ करेंगे।
समागम अर्थात् संतों का संगम, इस पावन अवसर की तैयारियां पूर्ण समर्पण एवं चेतनता के साथ भक्तों द्वारा की जा रही है। जिस ओर भी दृष्टि डालो उस ओर ही हजारों की संख्या में निःस्वार्थ भाव से सभी श्रद्धालु भक्त सूर्य की पहली किरण से लेकर सांय ढलने तक सतगुरु के साकार रूप में दीदार कर, झूमते, नाचते अपनी सेवाओं को आनंदपूर्वक निभा रहे है। इस अनुपम दृश्य को देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे इन श्रद्धालुओं में निरंकारी मिशन की सिखलाई मिलर्वतन एवं एकत्व के सुंदर भाव को प्रदर्शित कर रही हो। बच्चे, युवा और वृद्ध सभी पूरे जोश के साथ बढ़ चढ़कर इन सेवाओ में तनमयतापूर्वक योगदान दे रहे है। कही पर मैदानों को समतल करने हेतु मिट्टी से भरे तसलों की सेवा और वहीं दूसरी तरफ खाली तसलों की। छोटे-छोटे बच्चे भी अपने नन्हे-नन्हे हाथों में तसलों को उठाकर सेवा का भरपूर आनंद प्राप्त कर रहे है। हर ओर ही सेवा का अनुपम नजारा दृश्यमान हो रहा है। यह सब कुछ आने वाले सभी श्रद्धालुओं एवं आंगतुको के भव्य स्वागत हेतु किया जा रहा है ताकि वह समागम में आकर न केवल आध्यात्मिक शिक्षाओं से लाभान्वित होगें साथ ही सभी प्रकार की सुख सुविधाएं भी उपलब्ध करवायी जायेंगी।
संतों द्वारा संगतों के लिए टैन्ट लगाना, शामियानों की व्यवस्था में सहायता करना इत्यादि जैसे कार्य भी हर्षोल्लासपूर्वक किये जा रहे है। उनके दिन-रात किये जा रहे अथक प्रयासो का ही यह सकारात्मक परिणाम है कि मात्र कुछ ही समय में शामियानों की सजी हुई सुंदर नगरी एक आकर्षक समागम स्थल के रूप में परिवर्तित हो जायेगी। मानव मात्र की सेवा में लगे हुए इन सभी सेवादारों एवं भक्तों के चेहरों पर थकान नहीं अपितु आनन्द की आभा ही प्रतीत हो रही है जिसे देखकर हृदय अत्यंत प्रफुल्लित हो जाता है। यह सब केवल सतगुरु माता जी के पावन आशीर्वाद द्वारा ही हो रहा है। सेवा हेतु सतगुरु माता जी भी अकसर अपने विचारों में यही समझाते है कि ‘तन पवित्र सेवा किए, धन पवित्र किए दानय मन पवित्र हरिभजन से त्रिविध होय कल्याण। अर्थात् तन मन धन से की गयी सेवा सदैव ही सर्वोत्तम कहलाती है जिससे हमारा सर्वत्र रूप में कल्याण होता है।

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