कांग्रेस के साथ गठबंधन कर अरविंद केजरीवाल भारतीय राजनीति के सबसे बड़े पलटूराम बन गये

इंडिया गठबंधन के दो घटक दलों आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच सीटों का बंटवारा हो गया है। आम आदमी पार्टी दिल्ली, गुजरात और हरियाणा में कांग्रेस के साथ मिल कर चुनाव लड़ेगी मगर पंजाब में दोनों पार्टियां एक दूसरे के खिलाफ मैदान में उतरेंगी। यह कुछ उसी तरह है जैसे बंगाल और त्रिपुरा में तो कांग्रेस और वामपंथी दल साथ.साथ चुनाव लड़ते हैं मगर केरल में एक दूसरे के खिलाफ ताल ठोंकते हैं। देखा जाये तो ऐसे गठबंधन किसी विचारधारा के मेल के चलते नहीं बल्कि सत्ता हासिल करने के खेल के चलते बनते हैं। इसलिए जनता को सावधान रहने की जरूरत है क्योंकि जो एक राज्य में एक दूसरे के खिलाफ हैं उनका दूसरे राज्य में एक मंच पर दिखना धोखे के समान है। जो एक राज्य में एक दूसरे की नीतियों के आलोचक हैं वह दूसरे राज्य में मिलकर कभी जनता का भला नहीं कर सकते। आप भारत में ही नहीं किसी भी देश का राजनीतिक इतिहास उठा कर देख लीजिये ‘एक जगह लड़ाई और दूसरी जगह सगाई’ का फॉर्मूला कभी चुनावी जीत भी हासिल नहीं कर पाया और जनता का भला भी नहीं कर पाया। ऐसे गठबंधन हमेशा सिर्फ चुनावों के समय बनते हैं और उसके बाद एक दूसरे पर आरोप लगा कर टूट जाते हैं।
विश्वास ना हो तो जरा इंडिया गठबंधन के नेताओं के बीच गहरे तक समाये अविश्वास को देखिये। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच गठबंधन के ऐलान के बाद गुजरातए दिल्ली और हरियाणा में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच गठबंधन का ऐलान किया गया। इस दौरान खास बात यह रही कि दोनों जगह गठबंधन का ऐलान बड़े नेताओं से नहीं बल्कि पार्टियों की दूसरी या तीसरी पंक्ति के नेताओं से कराया गया। यही नहीं, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच गठबंधन का ऐलान करने के लिए जो प्रेस कांफ्रेंस हो रही थी उसका दोनों ही पार्टियों ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर लाइव प्रसारण भी नहीं किया जबकि दोनों ही पार्टियां हर छोटी.बड़ी प्रेस कांफ्रेंस का लाइव प्रसारण लिंक अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर साझा करती हैं।
देखा जाये तो कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच चुनावी गठबंधन होना भारतीय राजनीति का एक बड़ा और महत्वपूर्ण घटनाक्रम है क्योंकि कांग्रेस की नीतियों के खिलाफ लड़ कर और आंदोलन खड़ा करके ही आम आदमी पार्टी का जन्म हुआ था। आम आदमी पार्टी ने दिल्ली और पंजाब की सत्ता से कांग्रेस को बाहर किया और अपनी स्पष्ट बहुमत की सरकार बनाई। आम आदमी पार्टी के चमत्कारिक प्रदर्शन के चलते ही गुजरात में कांग्रेस ने अब तक का सबसे निराशाजनक प्रदर्शन किया। आम आदमी पार्टी ने गोवा में भी कांग्रेस को काफी नुकसान पहुँचाया और हरियाणा में भी अपने संगठन का आधार बढ़ाया। आम आदमी पार्टी गुजरात विधानसभा चुनाव परिणाम से पहले तक एक क्षेत्रीय दल थी। इस लिहाज से देखें तो यह एकमात्र ऐसा क्षेत्रीय दल है जिसने कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी को सर्वाधिक राजनीतिक नुकसान पहुँचाया। लेकिन कांग्रेस की मजबूरी देखिये कि उसने उसी आम आदमी पार्टी के साथ समझौता कर लिया।
देखा जाये तो इस गठबंधन से अरविंद केजरीवाल की राजनीति और नीयत पर भी सवाल उठे हैं। उन्होंने कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़कर पहली जीत हासिल की थी। लेकिन पहली बार में ही जब उन्हें सरकार बनाने में सहयोग की जरूरत पड़ी तो कांग्रेस के समर्थन से सरकार बना ली थी। बाद में जब 49 दिनों की सरकार चलाकर केजरीवाल ने इस्तीफा दिया था तब जनता से माफी मांगते हुए कहा था कि मैंने गलती की और अब आगे कभी कांग्रेस का समर्थन नहीं लूंगा। लेकिन अब केजरीवाल कांग्रेस के साथ फिर चले गये। इस लिहाज से देखें तो नीतीश कुमार नहीं बल्कि केजरीवाल भारतीय राजनीति के सबसे बड़े पलटूराम हैं। हम आपको याद दिला दें कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने के दौरान केजरीवाल रोजाना कांग्रेस और भाजपा के तमाम नेताओं के खिलाफ आरोपपत्र जारी किया करते थे और उन्हें जेल भेजने की मांग किया करते थे लेकिन समय बदला और भ्रष्टाचार से लड़ाई लड़ने वाले केजरीवाल, उनकी सरकार और आम आदमी पार्टी के कई नेता खुद भ्रष्टाचार के आरोपों के घेरे में आ गये और उन नेताओं तथा दलों के साथ गठबंधन करने लग गये जिन्हें कल तक वह सबसे बड़ा भ्रष्टाचारी बताया करते थे।

बहरहाल, देखा जाये तो अलग तरह की राजनीति करने के नाम पर केजरीवाल ने जनता को धोखा दिया क्योंकि वह उन्हीं के जैसे बन गये जिनको बदलने के लिए वह राजनीति में आये थे। जहां तक कांग्रेस की बात है तो उसके लिए यही कहा जा सकता है कि जिस सबसे नये राष्ट्रीय दल आप ने कांग्रेस से दिल्ली और पंजाब की सत्ता छीनी उसी के सामने देश के सबसे पुराने राजनीतिक दल ने घुटने टेक दिये।
नीरज कुमार दुबे

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