धर्म, अध्यात्म, परम्परा, संस्कार एवं लोक जीवन में मातृ-शक्ति पूज्यनीय

जिसे सुनने के लिए जिले में समुचित व्यवस्था की गई थी। कांकेर विकासखण्ड के ग्राम पंचायत भवन पोटगांव में भी लोकवाणी को सुनने की व्यवस्था की गई थी, जिसमें गांव के सभी वर्ग के लोगों ने लोकवाणी का श्रवण किया।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने लोकवाणी में ‘महिलाओं को बराबरी के अवसर’ विषय पर प्रदेशवासियों से मुखातिब होते हुए कहा कि मातृ-शक्ति को हमारे धर्म, अध्यात्म, परम्परा, संस्कार, लोक जीवन में पूज्यनीय का सम्मान प्राप्त है। हमारे छत्तीसगढ़ में तो देवी को अपने हर स्वरूप में माँ माना जाता है। दन्तेवाड़ा में माँ दन्तेश्वरी, डोंगरगढ़ में माँ बम्लेश्वरी, रतनपुर में माँ महामाया, चन्द्रपुर में माँ चन्द्रहासिनी के शक्तिपीठ और हर गांव-हर शहर में कोई न कोई लोक आस्था केन्द्र है, जिसके बारे में व्यापक मान्यता है कि वहाँ विराजी देवी माँ हमारी रक्षा करती हैं, पालन करती हैं, जिनके आशीर्वाद से हम तरक्की करते हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि छत्तीसगढ़ में स्त्री-पुरूष अनुपात राष्ट्रीय औसत से बेहतर है और इसमें सुधार भी हो रहा है। रायगढ़ एवं बीजापुर जिले में ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान’ के तहत सराहनीय कार्य किए जा रहे हैं। आदिवासी अंचलों में तो महिलाओं की संख्या पुरूषों से भी अधिक है, जो देश और दुनिया के लिए एक उदाहरण बन चुका है। समाजों में मातृ-सत्ता की प्रधानता है, लेकिन इन सबके बावजूद, महिला और पुरूषों में बराबरी का सवाल सामयिक है।
मुख्यमंत्री बघेल ने लोकवाणी के माध्यम से कहा कि आजादी की लड़ाई में महिलाओं ने पुरूषों के कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष किया था और यह साबित कर दिया था कि उन्हें बराबरी का पूरा हक है, जो ऐतिहासिक और परम्परागत कारण रहे हैं, उसका समाधान भारत की आजादी और संविधान निर्माण के साथ हो गया था, लेकिन हम जानते हैं कि मनोवृत्ति बदलने के लिए सामाजिक जागरण की जरूरत पड़ती है। विगत दशकों का इतिहास गवाह है कि हमने महिलाओं को अधिकार देकर ही बहुत बड़े अंतर को पाट दिया है, लेकिन देश में कई स्थानों पर ऐसे समूह कार्यरत हैं, जिनकी सोच प्रतिगामी है और जो महिलाओं को समानता का अधिकार देने के उदार विचारों के खिलाफ खड़े होते है, हमने महिला सम्मान को उनके अधिकारों और स्वावलंबन से जोडऩे की रणनीति अपनाई है। मुख्यमंत्री बघेल ने कहा कि हमने जहाँ-जहाँ महिलाओं को सुविधाएं दी हैं, वहाँ उन्होंने आगे बढक़र बड़ी-बड़ी जिम्मेदारियाँ उठाई हैं और सफलता की नई-नई कहानियाँ भी लिख रही हैं। उन्होंने कहा कि स्थानीय स्तर पर महिला स्व-सहायता समूह, वो चाहे गौठान से जुड़े हों या किसी अन्य कार्य से, उनके द्वारा निर्मित सामग्री के विपणन के लिए जिला प्रशासन पूरा सहयोग कर रहा है। सरकार की विभिन्न संस्थाओं, स्कूल, छात्रावास या अन्य शासकीय विभागों में जरूरत के अनुसार खरीदी में ऐसे समूहों को पूरी प्राथमिकता मिलेगी। एक दुकान-सब्बो सामान के नवाचार से ग्रामीण महिलाओं को समृद्धि और खुशहाली का नया रास्ता मिला है, नारी का जीवन अपने परिवार की सारी आवश्यकताओं के लिए समर्पित रहता है। नारी को अन्नपूर्णा भी कहा जाता है, क्योंकि वही परिवार के लिए भोजन और पोषण का इंतजाम भी करती है। मुख्यमंत्री ने कहा कि यदि माँ कुपोषित, एनीमिया की शिकार रहेगी तो, उनके शिशु की सेहत कैसे अच्छी रहेगी और इस तरह तो पूरी पीढ़ी जन्मजात कमजोर हो जाएगी, इसलिए हमने कुपोषण को सबसे बड़ी हिंसा, नक्सलवादी और आतंकवादी हमले से ज्यादा नुकसानदायक माना है। मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान वास्तव में माँ और नवजात शिशु के बेहतर जीवन की शुरूआत के लिए है, हमारी बहनों ने बहुत जिम्मेदारी और गंभीरता के साथ इस अभियान के मर्म को समझा है। 02 अक्टूबर गांधी जयंती के दिन से प्रदेश के सभी जिलों में मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान शुरू किया गया। इसके अन्तर्गत जन्म से 5 वर्ष तक के बच्चों को तथा 15 से 49 वर्ष तक की महिलाओं को खून की कमी और कुपोषण की समस्या से उबारने का लक्ष्य रखा गया है। वर्तमान में साढे पाँच लाख हितग्राहियों को अतिरिक्त पोषण आहार, गर्म भोजन दिया जा रहा है। इसके अलावा पूरक पोषण आहार कार्यक्रम, महतारी जतन योजना, पोषण आहार योजना का संचालन भी किया जा रहा है। इस तरह 30 लाख से अधिक हितग्राहियों को विभिन्न पोषण योजनाओं का लाभ दिया जा रहा है। इसमें गर्भवती भी हैं, शिशुवती भी हैं तथा अन्य आवश्यकताओं वाली बहनें भी हैं। आंगनबाड़ी केन्द्रों, महिला स्व-सहायता समूहों से लेकर जनभागीदारी समितियों तक का सहयोग इस अभियान में मिल रहा है। सुपोषण अभियान बहुत अच्छे से चल रहा है जिसके कारण कुपोषण की दर में कमी की खबरें आनी भी शुरू हो गई हैं।
मुख्यमंत्री बघेल ने शिक्षा कर्मी बहनों की समस्या का जिक्र करते हुए कहा 02 साल की सेवा पूरी करने वाले शिक्षाकर्मी को भी नियमित कर दिया जाएगा। वर्ष 2020-21 का बजट विधानसभा में प्रस्तुत किया गया है, इस बजट में यह मांग भी पूरी कर दी गई है। विधानसभा से बजट पारित होते ही इसकी प्रक्रिया पूरी कर दी जाएगी, इस निर्णय का ज्यादातर लाभ महिलाओं को ही मिलेगा। पी.एस.सी., व्यापम, विभागीय परीक्षाओं के माध्यम से होने वाली भर्तियों के दरवाजे खोल दिए गए हैं। शासकीय सेवाओं में महिलाओं के लिए 30 प्रतिशत पद आरक्षित किए गए हैं। वहीं आयु सीमा में भी 10 वर्ष की विशेष छूट दी गई है, इस तरह सभी नियमों का पालन करते हुए जितने पुराने रिक्त पद थे, उन सब पर भर्ती हुई है और हो रही है। नई प्रशासनिक इकाइयों, नए कार्यालयों, नए स्कूल-कॉलेजों के लिए भी लगातार निर्णय लिए जा रहे हैं और नियमित भर्ती प्रक्रिया में भी बड़ी संख्या में बेटियाँ और बहनें परीक्षाओं के माध्यम से चयनित हो रही हैं। स्कूल हो या कॉलेज, शिक्षकों, प्राध्यापकों, खेल शिक्षकों आदि पदों पर लम्बे अरसे से संविदा एडहॉक आदि तरीके से अस्थाई नियुक्ति की जाती थी, हमने स्थायी नियुक्ति का रास्ता अपनाया है, ताकि युवाओं को हर साल रिनीवल की चिन्ता न करना पड़े कि आज तो नौकरी पर हैं, कल क्या होगा, पता नहीं, ऐसी परिस्थितियों से हमने युवाओं को, बेटियों को, बाहर निकाला है ताकि वे अपने भविष्य की पक्की योजना बना सकें।
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