हाल ही में चीन ने अपनी जनसंख्या नीति को परिवर्तित करते हुए प्रत्येक दंपति को तीन बच्चे पैदा करने की अनुमति सुनिश्चित की है। चीन में अत्यधिक धीमी गति से बढ़ती जनसंख्या के नये चिंताजनक आंकड़ों और श्रम बल में कमी की आशंका के मद्देनजर जनसंख्या नीति में बड़ा बदलाव किया गया है।
गौरतलब है कि चीन में मई 2021 की शुरुआत में प्राप्त जनगणना के नये आंकड़ों से पता चला है कि 1950 के दशक के बाद से पिछले दशक के दौरान जनसंख्या सबसे धीमी दर से बढ़ी है। चीन की जनसंख्या 2019 की तुलना में 2020 में 0.53 प्रतिशत बढ़कर 1.41 अरब ही हो पाई है। चीन की नयी जनगणना के आंकड़ों से यह भी पता चला है कि चीन जिस कार्य बल संकट का सामना कर रहा था, वह संकट और अधिक गहरा सकता है। कारण यह कि चीन में 60 वर्ष से अधिक उम्र के बुजुर्ग लोगों की आबादी बढ़कर 26.4 करोड़ हो गई है जो कि पिछले साल के मुकाबले 18.7 प्रतिशत ज्यादा है। साथ ही जनसंख्या औसत आयु बढऩे से चीन में कामकाजी आबादी यानी 16 से 59 आयु वर्ग के लोग 88 करोड़ पाए गए, ऐसे में आधिकारिक अनुमान लगाया गया कि अगले साल 2022 तक चीन में श्रमिकों की कमी हो सकती है और भविष्य में चीन के आर्थिक परिदृश्य पर भी इसका प्रतिकूल असर होगा।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि चीन ने 2016 के बाद युवा कार्यशील आबादी की कमी के कारण निर्मित हो रही आर्थिक-सामाजिक चिंताओं के मद्देनजर 1979 से चली आ रही ‘एक दंपति-एक बच्चे की नीतिÓ को समाप्त करते हुए ‘एक दंपति-दो बच्चों की नीतिÓ को अपनाया था। वस्तुत: अब चीन के इतिहास की प्रमुख घातक भूलों में 1979 में अपनाई गई एक दम्पति-एक बच्चे की नीति भी शामिल हो गई है। इस नीति के कारण जनसंख्या वृद्धि पर कठोर प्रतिबंध लगाते समय भविष्य में श्रमिकों की कमी संबंधी मुद्दा नजरअंदाज हो गया था। यद्यपि चीन में जनसंख्या घटने से कई आर्थिक-सामाजिक मुश्किलों में कमी आई। भारी विकास भी हुआ। लेकिन जब चीन की अर्थव्यवस्था में घटते हुए श्रम बल से उत्पादन वृद्धि दर घटने का सिलसिला शुरू हुआ, तब 2016 के बाद अपनाई गई दो बच्चों की नीति के बाद भी चीन में बच्चों के जन्म में निरंतर वृद्धि नहीं हुई। चीन के शहरों में बच्चों की परवरिश की उच्च लागत के कारण कई दंपतियों ने दो बच्चों की नीति को नहीं अपनाया।
यद्यपि इस समय चीन के पास दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाले देश का दर्जा बरकरार है। लेकिन संयुक्त राष्ट्र द्वारा जून 2019 में जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत के 2027 तक दुनिया के सबसे ज्यादा आबादी वाले देश के तौर पर चीन से आगे निकल जाने का अनुमान है। अतएव एक ऐसे समय में जब चीन जनसंख्या और विकास के मॉडल में अपनी भूल संशोधित कर रहा है, तब दुनिया के जनसंख्या और अर्थ विशेषज्ञ चीन के जनसंख्या परिवेश से भारत को कुछ सीख लेने की सलाह देते हुए दिखाई दे रहे हैं। उनका मत है कि भारत में जहां एक ओर जनसंख्या विस्फोट को रोकना जरूरी है, वहीं जनसंख्या में ऐसी कमी से भी बचना होगा कि भविष्य में विकास की प्रक्रिया और संसाधनों का विदोहन मुश्किल हो जाए।
ऐसे में भारत द्वारा वर्तमान जनसंख्या परिवेश में दो अहम कदम सुनिश्चित किए जाने लाभप्रद होंगे। एक ‘हम दो-हमारे दोÓ की नीति को दृढ़तापूर्वक अपनाया जाए। इससे जहां भविष्य में श्रम बल चिंताओं से दूर रहकर विकास की डगर पर लगातार आगे बढ़ा जा सकेगा, वहीं तेजी से बढ़ती जनसंख्या से निर्मित हो रही गरीबी, बेरोजगारी, कुपोषण, शहरीकरण, मलिन बस्ती फैलाव जैसी कई चुनौतियों को नियंत्रित भी किया जा सकेगा।
यद्यपि भारत दुनिया का पहला देश है, जिसने अपनी जनसंख्या नीति बनाई थी, लेकिन देश की जनसंख्या वृद्धि दर आशा के अनुरूप नियंत्रित नहीं हो पाई है। गौरतलब है कि दुनिया की कुल जनसंख्या में भारत की हिस्सेदारी करीब 17.5 फीसदी हो गई है। जबकि पृथ्वी के धरातल का मात्र 2.4 फीसदी हिस्सा ही भारत के पास है। देश में एक दंपति-दो बच्चों के ध्येय वाक्य का परिपालन नहीं होने से तेजी से बढ़ती जनसंख्या का संसाधनों पर जबरदस्त दबाव बढ़ रहा है। ऐसे में जनसंख्या के अनियंत्रित रूप से बढऩे की चुनौतियों के मद्देनजर उपयुक्त जनसंख्या के रोडमैप को अवश्य ध्यान में रखा जाना होगा।
इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि भारत के युवाओं को उपयुक्त शिक्षण और प्रशिक्षण से मानव संसाधन के रूप में उपयोगी बनाया जा सकता है। भारत की जनसंख्या में करीब पचास प्रतिशत से ज्यादा उन लोगों का है, जिनकी उम्र पच्चीस साल से कम है। ऐसे में वे मानव संसाधन बनकर देश के लिए आर्थिक शक्ति बन सकते हैं। कोविड-19 के बीच देश के साथ-साथ दुनिया के कई देशों की अर्थव्यवस्थाओं को संभालने में भारत की कौशल प्रशिक्षित नयी पीढ़ी प्रभावी भूमिका निभा रही है। वर्क फ्रॉम होम करने की प्रवृत्ति को व्यापक तौर पर स्वीकार्यता से आउटसोर्सिंग को बढ़ावा मिला है। कोरोना की चुनौतियों के बीच भारत के आईटी सेक्टर द्वारा समय पर दी गई गुणवत्ता पूर्ण सेवाओं से वैश्विक उद्योग-कारोबार इकाइयों का भारत की आईटी कंपनियों पर भरोसा बढ़ा है। कोविड-19 के बीच अब देश और दुनिया में डिजिटल रोजगार छलांगे लगाकर बढ़ते हुए दिखाई दे रहे हैं। डिजिटल रोजगारों में जिस तरह डिजिटल कौशल जरूरी है, उनमें भारत की स्थिति बेहतर होती जा रही है। ऐसे में भारत की कौशल प्रशिक्षित नयी पीढ़ी देश के लिए बड़े पैमाने पर विदेशी मुद्रा की कमाई करते हुए भी दिखाई दे रही है।
यह बात भी महत्वपूर्ण है कि दुनिया के कई विकसित और विकासशील देशों में घटती हुई जन्म दर के कारण कौशल प्रशिक्षित भारत की नयी पीढ़ी की अहमियत बढ़ गई है। दुनिया के ख्याति प्राप्त मानव संसाधन परामर्श संगठन कॉर्न फेरी और विश्व बैंक की रिपोर्टें भी भारत के संदर्भ में अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। कॉर्न फेरी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जहां दुनिया में 2030 तक कुशल कामगारों का संकट होगा, वहीं भारत के पास 24.5 करोड़ अतिरिक्त कुशल कामगार होंगे। रिपोर्ट में कहा गया है कि जहां 2030 तक दुनिया के 19 विकसित और विकासशील देशों में 8.52 करोड़ कुशल श्रम शक्ति की कमी होगी वहीं दुनिया में भारत इकलौता देश होगा, जिसके पास 2030 तक जरूरत से ज्यादा कुशल कामगार होंगे। भारत ऐसे में विश्व के तमाम देशों में कुशल कामगारों को भेजकर फायदा उठा सकेगा।
आशा है कि सरकार संयुक्त राष्ट्र की वैश्विक जनसंख्या संबंधी रिपोर्ट और चीन की तीन बच्चों की नयी जनसंख्या नीति के मद्देनजर एक ओर देश के आर्थिक और बुनियादी संसाधनों की चुनौतियों के बीच उपयुक्त जनसंख्या वृद्धि दर के लिए एक दंपति-दो बच्चों की नीति दृढ़ता से आगे बढ़ाएगी वहीं दूसरी ओर देश के अतिरिक्त श्रम बल को मानव संसाधन के रूप में परिवर्तित करने का हरसंभव प्रयास करेगी।
इस परिप्रेक्ष्य नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत नयी पीढ़ी को अत्याधुनिक और वैश्विक मानकों के अनुरूप नयी डिजिटल रोजगार जरूरतों के अनुरूप सजाना-संवारना होगा। साथ ही नयी पीढ़ी को डिजिटल दौर की स्किल्स के साथ अच्छी अंग्रेजी, कम्प्यूटर दक्षता तथा कम्युनिकेशन स्किल्स की योग्यताओं से सुसज्जित करने का हरसंभव प्रयास किया जाना होगा। निश्चित रूप से ऐसे रणनीतिक प्रयासों से देश की जनसंख्या देश के लिए अभिशाप नहीं होगी वरन वह आर्थिक वरदान के रूप में भी दिखाई दे सकती है।
जयंतीलाल भंडारी