भारत की हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन की पहली खेप पहुंची अमेरिका

नई दिल्ली। अमेरिका और कुछ अन्य देशों की मदद करने के लिए भारत ने कुछ दिन पहले ही मलेरिया-रोधी इस दवा के निर्यात पर लगा प्रतिबंध मानवीय आधार पर हटा दिया था। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के अनुरोध पर इस हफ्ते की शुरुआत में भारत ने अमेरिका को हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन की 35.82 लाख गोलियों के निर्यात को मंजूरी दे दी। इसके साथ दवा के निर्माण में आवश्यक नौ टन फार्मास्यूटिकल सामग्री या एपीआई भी भेजी गई है।
अमेरिका में भारत के राजदूत तरणजीत सिंह संधू ने ट्वीट किया कि कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में हमारे सहयोगियों को हमारा पूरा सहयोग है। भारत से हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन की खेप आज नेवार्क हवाई अड्डे पर पहुंची। डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले हफ्ते फोन कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अमेरिका के लिए मलेरिया-रोधी दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के निर्यात को अनुमति देने का अनुरोध किया था, जिसके बाद भारत ने सात अप्रैल को इस दवा के निर्यात पर लगे प्रतिबंध को हटा दिया था। भारत विश्व में इस दवा का प्रमुख निर्माता है, जो पूरी दुनिया में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन की आपूर्ति का 70 प्रतिशत उत्पादन करता है।
ब्रिटेन भी पहुंच भारत की कोरोनारोधी दवा
वहीं, भारत की ओर से भेजे गए 30 लाख पारासिटामोल के पैकेट की पहली खेप रविवार को ब्रिटेन पहुंच गई। ब्रिटिश सरकार ने कोरोना वायरस संकट के चलते लागू प्रतिबंध के बावजूद इस महत्वपूर्ण दवा का निर्यात करने पर भारत सरकार का आभार व्यक्त किया। विदेश एवं राष्ट्रमंडल कार्यालय में दक्षिण एशिया और राष्ट्रमंडल मामलों के राज्यमंत्री लॉर्ड तारिक अहमद ने शुक्रवार को कहा कि यह खेप अभूतपूर्व वैश्विक संकट के दौरान दोनों देशों के बीच सहयोग का प्रतीक है। ब्रिटेन और भारत कोरोना से खिलाफ मुकाबला करने के लिए साझेदारी के तहत मिलकर काम करेंगे। मैं ब्रिटिश सरकार की ओर से भारत को दवा भेजने का फैसला करने के लिए आभार व्यक्त करता हूं। उन्होंने बताया कि यह दवा विमान के जरिये रविवार को ब्रिटेन पहुंचेगी। यह ऐसे समय हो रहा है, जब ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में फंसे अपने हजारों नागरिकों को निकालने लिए विशेष विमानों की व्यवस्था की जा रही है।मिलाया जाता है, जो संक्रमण फैलाने वाले सूक्ष्मजीवों को नष्ट कर देता है।

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