पूर्व CJI एनवी रमाना के खुलासे से न्यायपालिका पर दबाव का सवाल: जब न्यायाधीशों को धमकियां मिलती हैं तो आम आदमी का क्या हाल होगा?

दीक्षांत समारोह में खुलासा: आंध्र सरकार ने परिवार पर केस दर्ज करवाए

हरिद्वार, 3 नवंबर 2025: भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (CJI) एनवी रमाना ने आंध्र प्रदेश के अमरावती में वीआईटी-एपी विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में एक चौंकाने वाला खुलासा किया, जिसने न्यायिक स्वतंत्रता और राजनीतिक दबाव के बीच के तनाव को उजागर कर दिया। उन्होंने बताया कि जब वे CJI बनने वाले थे, तब तत्कालीन आंध्र प्रदेश सरकार ने उनके परिवार के खिलाफ झूठे पुलिस केस दर्ज करवाए ताकि उन पर दबाव डाला जा सके। रमाना ने कहा, “मेरे परिवार को निशाना बनाया गया, झूठे आपराधिक मामले बनाए गए। यह सब केवल मुझे दबाने के लिए था।” यह बयान न केवल उनके व्यक्तिगत अनुभव को दर्शाता है बल्कि पूरे लोकतंत्र में संस्थागत स्वतंत्रता पर सवाल खड़े करता है।

अमरावती किसानों का संघर्ष: तीन राजधानियों की नीति के खिलाफ लंबी लड़ाई

किसानों की दृढ़ता से अमरावती बनी राजधानी

रमाना ने अपने छात्र जीवन से अमरावती से जुड़ाव का जिक्र किया। उन्होंने याद दिलाया कि अमरावती शहर किसानों की दृढ़ता का प्रतीक है, जो 2019 से 2024 तक राज्य की “तीन राजधानियों” नीति के खिलाफ शांतिपूर्ण आंदोलन में डटे रहे। 2024 में एन. चंद्रबाबू नायडू की सरकार बनने पर यह नीति वापस ली गई। रमाना ने कहा, “दक्षिण भारत में शायद ही कोई आंदोलन इतनी लंबी लड़ाई लड़ पाया हो जितनी अमरावती के किसानों ने लड़ी। लेकिन दुर्भाग्य से न मीडिया ने सच्चाई बताई न राजनेताओं ने श्रेय दिया।” उन्होंने किसानों के संघर्ष को न्यायिक नैतिकता का उदाहरण बताया।

राजनीतिक दबाव का खुलासा: न्यायाधीशों पर धमकी और स्थानांतरण

संवैधानिक संस्थाओं पर हस्तक्षेप का संकेत

रमाना का यह बयान न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर सवाल उठाता है। उन्होंने कहा कि आंदोलन के समर्थन में बोलने वालों को धमकियां मिलीं, यहां तक कि न्यायाधीशों को स्थानांतरण और दबाव का शिकार होना पड़ा। “केवल विधिवेत्ता, वकील और न्यायालय ही संवैधानिक वादों पर खड़े रहे।” यह खुलासा दिखाता है कि राजनीतिक शक्तियां न्याय पर अप्रत्यक्ष प्रभाव डालने का प्रयास करती हैं—कभी दंडात्मक कार्रवाई से, कभी पदोन्नति या स्थानांतरण से। यदि CJI जैसे पद पर दबाव हो तो सामान्य नागरिक का न्याय कैसे मिलेगा?

लोकतंत्र का आधार: कानून का शासन और न्यायपालिका की स्वतंत्रता

सत्ता के दुरुपयोग पर चिंता

रमाना ने कहा, “सरकारें बदल सकती हैं लेकिन न्यायपालिका और कानून का शासन स्थिरता के स्तंभ हैं। यह तभी जीवित रहेगा जब न्याय के रक्षक अपनी सत्यनिष्ठा को नहीं बेचेंगे।” यह कथन वर्तमान राजनीतिक माहौल पर टिप्पणी है। पिछले वर्षों में कई मामलों में न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर सवाल उठे हैं। राजनीतिक दबाव से न्यायाधीश असुरक्षित महसूस करते हैं तो नागरिकों के अधिकारों की रक्षा कौन करेगा? यह केवल अमरावती तक सीमित नहीं बल्कि पूरे लोकतंत्र का सवाल है।

आंदोलनों का महत्व: किसान-वकील-न्यायविद का संघर्ष

आशा की किरण: सिविल सोसाइटी की भूमिका

रमाना ने आशा जताई कि किसान, वकील, न्यायविद, सिविल सोसाइटी और न्यायाधीश कानून के शासन की रक्षा करेंगे। उन्होंने कहा कि कई राजनीतिक नेता मौन रहे लेकिन संवैधानिक संस्थाएं डटी रहीं। यह बयान सिस्टम को आईना दिखाता है। जब सत्ता न्याय को प्रभावित करती है तो लोकतंत्र कमजोर होता है।

सत्यनिष्ठा की जरूरत

रमाना का खुलासा न्यायपालिका की निष्पक्षता पर नैतिक संकट उजागर करता है। यदि न्यायाधीश दबाव में हों तो आम नागरिक का क्या? यही साहस और जनता की भागीदारी लोकतंत्र को मजबूत रखेगी।

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