पर्वतीय विकास पुरुष नरेंद्र सिंह भंडारी की उपेक्षित प्रतिमा झाड़ियों में दबी, सम्मान की मांग तेज

अद्भुत योगदान, पर उपेक्षित स्मृति

पौड़ी
उत्तराखंड के पर्वतीय विकास के पथप्रदर्शक माने जाने वाले स्वर्गीय नरेंद्र सिंह भंडारी की प्रतिमा उनके पैतृक गांव जौरासी (जाखधार) में उपेक्षा का शिकार हो रही है। शासन-प्रशासन की अनदेखी के कारण उनकी अष्टधातु से निर्मित प्रतिमा आज कंटीली झाड़ियों और विच्छू घास के बीच गुम है।


तीन बार विधायक, दो बार मंत्री रहे भंडारी जी

स्व. भंडारी जी ने 1958 में निर्दलीय विधायक के रूप में राजनीतिक पारी की शुरुआत की थी। इसके बाद वे दो बार कांग्रेस से चुने गए और 1972-73 में पर्वतीय विकास मंत्री बने। उनके कार्यकाल में कई महत्त्वपूर्ण सड़क, शिक्षा और स्वास्थ्य परियोजनाएं शुरू हुईं, जिनका लाभ आज भी उत्तराखंड की जनता उठा रही है।


विकास कार्य जो रह गए अनकहे

उनकी पहल पर बनीं कुछ महत्वपूर्ण परियोजनाएं:

  • रुद्रप्रयाग-पोखरी-हापला-गोपेश्वर सड़क (118 किमी)
  • पोखरी-कर्णप्रयाग मार्ग (29 किमी)
  • जोशीमठ-औली रोपवे (1984 में उद्घाटन)
  • गोपेश्वर जिला चिकित्सालय की स्थापना
  • राजकीय इंटर कॉलेज नागनाथ, पोखरी की स्थापना

प्रतिमा का हाल बेहाल, गंदगी और झाड़ियों के बीच छिपी

उनकी याद में जौरासी गांव में स्थापित प्रतिमा आज एक छोटे प्रतीक्षालय में ग्रिल के पीछे उपेक्षित खड़ी है। चारों ओर गंदगी का अंबार, कंटीली झाड़ियां और ऊगी विच्छू घास ने प्रतिमा को ढक दिया है। यह दृश्य शासन की असंवेदनशीलता और स्थानीय प्रशासन की उदासीनता को दर्शाता है।


स्थानीय नेताओं ने जताई नाराजगी, की पुनर्स्थापन की मांग

पूर्व प्रधानाचार्य कुंवर सिंह चौधरी, पूर्व जिला अध्यक्ष सत्येंद्र सिंह नेगी, नगर पंचायत अध्यक्ष सोहन लाल, भाजपा नेता आनंद सिंह राणा और अन्य जनप्रतिनिधियों ने इस उपेक्षा पर गहरा रोष जताया है। उन्होंने मांग की है कि भंडारी जी की प्रतिमा को सम्मानजनक स्थान पर स्थापित किया जाए और वहाँ साफ-सफाई एवं रखरखाव की नियमित व्यवस्था सुनिश्चित हो।


सम्मान का हकदार है ऐसा योगदान

स्वर्गीय नरेंद्र सिंह भंडारी का योगदान न केवल उत्तराखंड की भौगोलिक संरचना में है, बल्कि उन्होंने समाज को शिक्षा, स्वास्थ्य और पर्यटन के जरिए आत्मनिर्भरता की राह दिखाई। ऐसे महापुरुष की स्मृति का इस प्रकार उपेक्षित रहना समूचे राज्य के लिए शर्मनाक है।

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