पर्युषण पर्व: जैन समाज का सबसे महत्वपूर्ण पर्व
पर्युषण पर्व जैन धर्म का सबसे प्रमुख और महत्वपूर्ण पर्व है, जो आत्मा के शोधन और उत्कर्ष का अवसर प्रदान करता है। यह पर्व जैन समाज के लोगों को अपने जीवन को मांजने, आत्मा पर चढ़े मैल को धोने, और वर्ष भर की त्रुटियों को सुधारने का अवसर देता है। यह पर्व व्यक्ति को अपने आंतरिक संस्कारों को सुदृढ़ बनाने और अपसंस्कारों को त्यागने की प्रेरणा देता है।
श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा में पर्युषण
इस पर्व के दौरान श्वेतांबर परंपरा में आठ दिन और दिगंबर परंपरा में दस दिन महत्वपूर्ण होते हैं। श्वेतांबर जैन धर्मावलंबी पर्युषण पर्व के रूप में इन आठ दिनों में ध्यान, स्वाध्याय, जप, तप, सामायिक, उपवास, और क्षमा जैसे विभिन्न साधनों द्वारा आत्म-मंथन करते हैं। वहीं, दिगंबर जैन धर्मावलंबी दशलक्षण पर्व के रूप में दस दिनों तक आत्मा के दस धर्मों – क्षमा, मुक्ति, आर्जव, मार्दव, लाघव, सत्य, संयम, तप, त्याग, और ब्रह्मचर्य – की आराधना करते हैं। ये धर्म व्यक्ति को अंतर्मुखी बनाने और जीवन की गंदगी को साफ करने में मदद करते हैं।
आत्मोत्थान और आत्मा की उन्नति के लिए पर्व
पर्युषण पर्व का आयोजन प्रतिवर्ष चातुर्मास के दौरान भाद्र मास के शुक्ल पक्ष में होता है। इस महापर्व में निरंतर धर्माराधना करने का प्रावधान है। यह पर्व आत्मा को उत्कर्ष की ओर ले जाने, नैतिकता और चरित्र की चौकसी करने, और व्यक्ति को प्रेरित करने के लिए मनाया जाता है ताकि भौतिक और सांसारिक जीवन जीते हुए भी व्यक्ति आध्यात्मिकता को अपने जीवन का हिस्सा बना सके।
क्षमा और अहंकार पर विजय का पर्व
पर्युषण पर्व में क्षमा और अहंकार पर विजय पाने की विशेष सीख दी जाती है। क्रोध पर विजय पाने का सबसे अच्छा तरीका क्षमा को धारण करना है, और यह पर्व क्षमा को जीवन में उतारने की प्रेरणा देता है। इसी तरह, अहंकार व्यक्ति को पद और प्रतिष्ठा की अंधी दौड़ में शामिल कर देता है, और पर्युषण पर्व का द्वितीय दिवस ‘उत्तम मार्दव’ अहंकार पर विजय पाने की कला सिखाता है।
धर्म के दस लक्षणों की साधना
इस पर्व में दस धर्मों की साधना की जाती है, जिनमें अहिंसा, सत्य, तप, त्याग, ब्रह्मचर्य आदि शामिल हैं। ये धर्म व्यक्ति को संयमित और साधुता के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं। पर्व के दौरान व्यक्ति अपने जीवन की गंदगी को साफ करने, आत्मचिंतन और आत्मशोधन के माध्यम से वर्ष भर की त्रुटियों का प्रतिक्रमण करता है।
धर्माराधना और आत्मचेतना का जागरण
पर्युषण पर्व के साथ तप और मंत्र साधना को जोड़ा गया है। संयम, सादगी, सहिष्णुता, अहिंसा, और हृदय की पवित्रता के माध्यम से व्यक्ति आत्मचेतना का जागरण करता है। जैन समाज के सभी वर्ग इस पर्व को मनाते हैं और मंदिरों, जिनालयों, और उपासना स्थलों पर विशेष धर्माराधना करते हैं। श्रावक और श्राविकाएं भी अध्यात्म की ओर अग्रसर होते हैं।
क्षमावाणी: विश्व मैत्री दिवस
पर्युषण पर्व के समापन पर क्षमावाणी दिवस मनाया जाता है, जिसे विश्व मैत्री दिवस के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन, सभी व्यक्ति एक-दूसरे से क्षमा का आदान-प्रदान करते हैं, जिससे मनोमालिन्य दूर होता है और सहिष्णुता, सरलता, और मैत्री के भाव विकसित होते हैं। इस पर्व का उद्देश्य न केवल जैन समाज के लिए बल्कि संपूर्ण प्राणी जगत के लिए सुख-शांति का संदेश देना है।
युवा पीढ़ी के लिए पर्युषण पर्व की प्रासंगिकता
पर्युषण महापर्व मात्र जैन समाज का पर्व नहीं है, बल्कि यह एक सार्वभौमिक पर्व है, जो आत्मा की उपासना और आत्माराम के साथ जुड़ने का अवसर प्रदान करता है। वर्तमान भौतिकतावादी युग में इस पर्व की प्रासंगिकता बनाए रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है, और इसके लिए जैन समाज को विशेषकर युवा पीढ़ी को इस पर्व की मूल्यवत्ता से परिचित कराना आवश्यक है।
आत्माराम का साधन और मोक्षगामी प्रयास
पर्युषण पर्व आत्माराम का साधन है, जिसमें व्यक्ति आत्माराम होकर आत्मार्थी बनता है और अलौकिक, आध्यात्मिक आनंद के शिखर पर आरोहण करता हुआ मोक्षगामी होने का प्रयास करता है। यह पर्व जैन धर्म की महानता और उसकी आत्मिक साधना का प्रतीक है, जो व्यक्ति को सच्चे अर्थों में मानवता और आध्यात्मिकता के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।