बच्चों की सुरक्षा के लिए सख्ती: उत्तराखंड में प्रतिबंधित कफ सिरप पर व्यापक छापेमारी अभियान, डॉक्टरों को न लिखने का निर्देश

देहरादून, 05 अक्टूबर 2025 उत्तराखंड सरकार ने बच्चों के स्वास्थ्य और जनसुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए प्रदेशभर में प्रतिबंधित कफ सिरप और दवाओं के खिलाफ कड़ा अभियान चला दिया है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और स्वास्थ्य मंत्री डॉ. धन सिंह रावत के सख्त निर्देशों पर स्वास्थ्य विभाग तथा खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन (एफडीए) की संयुक्त टीमें सभी जिलों में मेडिकल दुकानों, थोक व्यापारियों और अस्पतालों की फार्मेसी पर छापे मार रही हैं। यह कार्रवाई हाल ही में राजस्थान और मध्य प्रदेश में कफ सिरप के सेवन से बच्चों की मौत की घटनाओं के बाद शुरू की गई है, जहां ‘कोल्डरिफ’ जैसे सिरप में विषैले रसायन डायथाइलीन ग्लाइकॉल की मौजूदगी पाई गई। केंद्र सरकार की सलाह को तुरंत लागू करते हुए राज्य ने डॉक्टरों से अपील की है कि दो वर्ष से कम उम्र के बच्चों को प्रतिबंधित सिरप न लिखें। एफडीए ने चेतावनी दी है कि दोषपूर्ण दवाओं पर सख्त कानूनी कार्रवाई होगी, और सैंपलिंग अभियान तेज कर दिया गया है।

केंद्र की सलाह का त्वरित अमल: बच्चों की दवाओं पर विशेष निगरानी

मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा और राजस्थान के सीकर में कफ सिरप से 11 से अधिक बच्चों की मौत के बाद केंद्र सरकार ने 4 अक्टूबर को आपात सलाह जारी की। इसमें डायथाइलीन ग्लाइकॉल युक्त सिरपों पर प्रतिबंध लगाया गया और दो वर्ष से कम उम्र के बच्चों को बिना डॉक्टर की सलाह कोई खांसी-जुकाम की दवा न देने का निर्देश दिया। पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए भी इन दवाओं का सामान्य उपयोग प्रतिबंधित कर दिया गया।

स्वास्थ्य सचिव एवं एफडीए आयुक्त डॉ. आर. राजेश कुमार ने सभी मुख्य चिकित्सा अधिकारियों (सीएमओ) को तत्काल आदेश जारी किया। उन्होंने कहा, “बच्चों की सुरक्षा और जनस्वास्थ्य से बड़ा कोई मुद्दा नहीं। औषधि निरीक्षकों को चरणबद्ध तरीके से सिरपों के नमूने एकत्र करने और लैब जांच कराने का निर्देश है। दोषपूर्ण दवाएं बाजार से तुरंत हटाई जाएंगी।” डॉ. कुमार ने चिकित्सकों से अपील की कि वे केंद्र की सलाह का पालन करें, क्योंकि डॉक्टर यदि प्रतिबंधित सिरप लिखेंगे, तो दुकानदार उन्हें बेचेंगे। “डॉक्टरों की जिम्मेदारी से ही यह अभियान सफल होगा,” उन्होंने जोर दिया।

प्रदेशव्यापी छापेमारी: मेडिकल स्टोर्स से सैंपलिंग, कानूनी कार्रवाई का भय

अपर आयुक्त खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन तथा ड्रग कंट्रोलर ताजबर सिंह जग्गी के नेतृत्व में राज्यभर में युद्धस्तर पर छापे चल रहे हैं। जग्गी ने स्वयं देहरादून के जोगीवाला और मोहकमपुर जैसे संवेदनशील इलाकों का निरीक्षण किया। सभी जिलों में निरीक्षकों को सरकारी अस्पतालों, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और खुदरा दुकानों से सिरपों के नमूने लेने के आदेश हैं। “इस माह के अंत तक सैंपलिंग पूरी होगी, और लैब रिपोर्ट के आधार पर दोषी कंपनियों या विक्रेताओं पर कड़ी कार्रवाई होगी,” जग्गी ने कहा।

एफडीए की टीमें सक्रिय हैं, और यदि कोई दवा विषैली पाई गई तो आईपीसी की धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज होगा। केंद्र के ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स रूल्स 1945 के तहत प्रतिबंधित सिरपों की बिक्री पर 10 वर्ष तक की कैद और जुर्माना हो सकता है। अब तक 50 से अधिक सैंपल लैब भेजे गए हैं, और प्रारंभिक जांच में कुछ दुकानों पर प्रतिबंधित दवाएं मिली हैं।

बच्चों के लिए विशेष सलाह: दो वर्ष से कम उम्र में कोई दवा न दें

केंद्र की सलाह के अनुसार, दो वर्ष से कम उम्र के बच्चों को बिना चिकित्सक की सलाह कोई खांसी या जुकाम की दवा न दी जाए। पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में इन दवाओं का सामान्य उपयोग अनुशंसित नहीं है। केवल विशेषज्ञ की सलाह पर, सही खुराक और न्यूनतम अवधि के लिए ही उपयोग किया जाए। डॉ. कुमार ने अभिभावकों से अपील की, “बच्चों को घरेलू उपचार जैसे भाप, शहद या डॉक्टर की सलाह पर ही दवा दें।” यदि कोई प्रतिकूल प्रभाव दिखे, तो तुरंत नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र से संपर्क करें।

स्वास्थ्य मंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने कहा, “बच्चों की दवाओं से जुड़ी लापरवाही बर्दाश्त नहीं होगी। सभी डॉक्टर और विक्रेता प्रतिबंधित सिरप न लिखें या बेचें।” यह अभियान बच्चों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए अत्यावश्यक है।

मुख्यमंत्री का संकल्प: जनस्वास्थ्य में कोई समझौता नहीं

मुख्यमंत्री धामी ने कहा, “बच्चों की सुरक्षा और जनता के स्वास्थ्य से कोई खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं। हम प्रतिबंधित दवाओं पर सख्ती करेंगे।” उन्होंने प्रदेश में औषधि गुणवत्ता निगरानी प्रणाली को मजबूत करने का आश्वासन दिया। “हर दवा सुरक्षित और मानक गुणवत्ता वाली हो, यह सुनिश्चित करना हमारी प्राथमिकता है,” धामी ने जोर दिया। यह अभियान राज्य सरकार की जीरो टॉलरेंस नीति का हिस्सा है।

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