शिव को जल चढ़ाने की कहानी
सावन के महीने को भगवान शिव को समर्पित किया जाता है, और इस महीने में भगवान शिव की कृपा बरसती है। सावन के दौरान शिवभक्त कांवड़ यात्रा निकालते हैं और भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए गंगा जल लेकर शिवलिंग पर अर्पण करते हैं।
कांवड़ यात्रा की उत्पत्ति और नियम
कांवड़ यात्रा एक पुरानी परंपरा है जिसमें भक्त कंधे पर कांवड़ लेकर गंगा नदी से जल भरते हैं और फिर शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं। कांवड़ यात्रा के नियमों के अनुसार, कांवड़ियों को यात्रा के दौरान शुद्धता बनाए रखनी होती है और कांवड़ को जमीन पर नहीं रखना चाहिए।
चार प्रमुख कांवड़िए
- परशुराम: फरसाधारी परशुराम ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ किया और गढ़मुक्तेश्वर से गंगाजल लेकर बागपत के पुरा महादेव मंदिर में शिवलिंग पर जलाभिषेक किया।
- श्रवण कुमार: अपने अंधे माता-पिता की इच्छा पूर्ति के लिए श्रवण कुमार ने हरिद्वार से गंगाजल लाकर कांवड़ यात्रा की शुरुआत की।
- राम: राजा सागर के 60 हजार पुत्रों के उद्धार के लिए भागीरथ गंगा जल लेकर निकले। श्रीराम ने जल भरकर देवघर में जलाभिषेक किया।
- रावण: रावण ने हरिद्वार से गंगाजल लेकर बागपत के पुरा महादेव में शिवलिंग पर चढ़ाया।
कांवड़ यात्रा के प्रकार
- बोल बम कांवड़: यह सबसे सामान्य कांवड़ यात्रा है जिसमें कांवड़िये रास्ते में आराम करते हुए यात्रा करते हैं।
- खड़ी कांवड़: इसमें कांवड़ को जमीन पर नहीं रखा जाता और कांवड़िये बारी-बारी से कांवड़ को लेकर चलते हैं।
- झूला कांवड़: बांस से झूले के आकार की कांवड़ बनाई जाती है, और इसे ऊंची जगह पर टांगा जाता है।
- डाक कांवड़: इसमें कांवड़िये गंगाजल लेकर लगातार चलते रहते हैं और जलाभिषेक के बाद ही यात्रा समाप्त होती है।
- दंडवत कांवड़: इसे सबसे कठिन यात्रा माना जाता है। इसमें कांवड़िये दंडवत करते हुए यात्रा करते हैं।
सपा का बैन और योगी का समर्थन
साल 1990 में कांवड़ यात्रा के विस्तार का साल माना जाता है। 2015 में समाजवादी पार्टी की सरकार ने कांवड़ यात्रा में डीजे पर बैन लगा दिया, लेकिन योगी सरकार ने सत्ता में आने के बाद डीजे की परमिशन दे दी और कांवड़ियों पर हवाई जहाज से फूल भी बरसाए।