COP29 में CBAM को लेकर तीखा विवाद: विकासशील और विकसित देशों में टकराव

बकू, अज़रबैजान। COP29 जलवायु सम्मेलन के पहले दिन का सत्र भारत और चीन जैसे विकासशील देशों की ओर से यूरोपीय संघ के कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (CBAM) को एजेंडा में शामिल करने की मांग पर जोरदार बहस के कारण देर से शुरू हुआ। इस मुद्दे पर विकासशील और विकसित देशों के बीच गहरी असहमति दिखाई दी, जिसने सम्मेलन की दिशा पर गहरा प्रभाव डाला।

CBAM पर विकासशील देशों की चिंताएँ

CBAM यूरोपीय संघ द्वारा प्रस्तावित एक कर प्रणाली है, जो ऊर्जा-गहन उत्पादों जैसे लोहे, स्टील, सीमेंट, उर्वरक, और एल्युमीनियम के आयात पर लगाया जाएगा। यह कर उन उत्पादों के निर्माण में हुए कार्बन उत्सर्जन पर आधारित होगा। यूरोपीय संघ का तर्क है कि इससे यूरोप के घरेलू और विदेशी उत्पादकों के बीच समान प्रतिस्पर्धा रहेगी और पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा मिलेगा।

हालांकि, विकासशील देश, जैसे भारत, इसे आर्थिक दृष्टिकोण से एकतरफा और मनमाना कदम मानते हैं। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने CBAM को भारत के उद्योगों के लिए हानिकारक बताया और कहा कि इससे वैश्विक व्यापार संतुलन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) के अनुसार, CBAM के तहत भारत के यूरोप को निर्यात किए गए उत्पादों पर 25% अतिरिक्त कर लगेगा, जो भारत की अर्थव्यवस्था पर असर डाल सकता है।

वित्तीय एजेंडा और COP29 में तनाव

COP29 का सत्र एजेंडा में CBAM पर चर्चा के चलते विलंबित हुआ। UNFCCC प्रमुख साइमन स्टीएल ने जलवायु वित्त पर बल देते हुए इसे “दान नहीं बल्कि निवेश” के रूप में देखने की बात कही। BASIC देशों (ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, भारत, चीन) ने UNFCCC में CBAM का विरोध करते हुए इसे छोड़ने का प्रस्ताव दिया। चीन के जलवायु नीति निदेशक ली शुओ ने कहा कि CBAM जैसी नीतियाँ विकासशील देशों के हितों के लिए नुकसानदेह हो सकती हैं और वैश्विक जलवायु प्रयासों में बाधा डाल सकती हैं।

विशेषज्ञों की राय और CBAM का संभावित प्रभाव

चीन क्लाइमेट हब के निदेशक ली शुओ और तीसरी दुनिया नेटवर्क की मीना रमन ने CBAM को वैश्विक आर्थिक स्थिरता और विकासशील देशों की प्रगति में अवरोध के रूप में देखा। रमन ने जोर दिया कि COP29 में वित्तीय सहायता पर अधिक ध्यान देना चाहिए, ताकि विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने में सहयोग मिल सके।

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