द्वितीय केदार मद्महेश्वर धाम का होगा व्यापक विकास

देहरादून – उत्तराखंड के प्रसिद्ध पंचकेदारों में से एक द्वितीय केदार मद्महेश्वर धाम के विकास की तैयारी शुरू हो गई है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा की गई घोषणा के तहत इस धाम को एक प्रमुख तीर्थ स्थल के रूप में विकसित किया जाएगा। इसके साथ ही, केदारनाथ यात्रा के प्रमुख पड़ाव गौरीकुंड में स्थित मां गौरी मंदिर का सौंदर्यीकरण भी किया जाएगा।

मद्महेश्वर धाम के लिए विस्तृत योजना

राज्य सरकार के धर्मस्व और संस्कृति विभाग द्वारा इस संबंध में आदेश जारी किए गए हैं। विभाग के अनु सचिव रमेश सिंह रावत ने संस्कृति विभाग के निदेशक को निर्देशित किया है कि मद्महेश्वर धाम के विकास और गौरीकुंड के मां गौरी मंदिर के सौंदर्यीकरण के लिए विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार की जाए। इस कार्य की जिम्मेदारी लोक निर्माण विभाग को सौंपी गई है, जिसे बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति (बीकेटीसी) के साथ समन्वय स्थापित कर इसे आगे बढ़ाना है।

रोजगार के नए अवसर और तीर्थयात्रियों की संख्या में वृद्धि

बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति (बीकेटीसी) के अध्यक्ष अजेंद्र अजय ने मुख्यमंत्री धामी का धन्यवाद करते हुए कहा कि इस परियोजना से न केवल मद्महेश्वर धाम का विकास होगा, बल्कि श्रद्धालुओं की संख्या में भी वृद्धि होगी। इससे स्थानीय लोगों को रोजगार के नए अवसर प्राप्त होंगे और क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था को भी बल मिलेगा।

मद्महेश्वर धाम की धार्मिक महत्ता

मद्महेश्वर धाम उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जनपद में 3,497 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह पंचकेदारों में से दूसरा केदार माना जाता है। यहां भगवान शिव के नाभि स्वरूप की पूजा होती है, जिसे श्रद्धालुओं के बीच गहरी आस्था का केंद्र माना जाता है। मद्महेश्वर धाम तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को लगभग 14 किलोमीटर की पैदल यात्रा करनी पड़ती है।

गौरीकुंड के मां गौरी मंदिर का सौंदर्यीकरण

इसके अलावा, केदारनाथ धाम यात्रा के अंतिम मोटर पड़ाव गौरीकुंड में स्थित मां गौरी के मंदिर को भी और भव्य बनाने की योजना बनाई गई है। केदारनाथ यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालु सबसे पहले मां गौरी के दर्शन करते हैं, जिसके बाद वे आगे की यात्रा पर निकलते हैं। इस मंदिर का भी प्रबंधन बीकेटीसी के अंतर्गत आता है।

इस व्यापक विकास योजना के तहत उत्तराखंड के धार्मिक स्थलों का सौंदर्यीकरण न केवल धार्मिक पर्यटन को प्रोत्साहित करेगा बल्कि राज्य की सांस्कृतिक धरोहर को भी सहेजने में मददगार साबित होगा।

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