मुख्य बिंदु:
- “सतत अनुसंधान एवं नवाचार में चुनौतियां व अवसर” विषय पर राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन
- शिक्षा, शोध और सतत विकास में योगदान देने वाले वैज्ञानिकों को किया गया सम्मानित
- 10 से अधिक विश्वविद्यालयों की भागीदारी, 379 शोध पत्र प्रस्तुत, 204 शोध पत्रों का चयन
- सतत विकास लक्ष्यों (UN SDGs) से जुड़ी शोध और नवाचार पहल पर हुई चर्चा
- पर्यावरणीय चुनौतियों, आपदा प्रबंधन और सतत कृषि पर विशेषज्ञों ने रखे विचार
देहरादून।
उत्तराखंड के होटल पर्ल ग्रैंड, देहरादून में स्पेक्स और स्पीकिंग क्यूब के संयुक्त तत्वावधान में “सतत अनुसंधान एवं नवाचार में चुनौतियां व अवसर” विषय पर राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस दो दिवसीय सम्मेलन का उद्देश्य शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं, नीति-निर्माताओं और छात्रों को एक मंच पर लाना था, जहां सतत अनुसंधान और नवाचार से संबंधित प्रमुख चुनौतियों और अवसरों पर चर्चा की गई।
मुख्य अतिथि, फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टिट्यूट (FRI) के पूर्व प्रमुख, प्लांट पैथोलॉजी विभाग के डॉ. यू. पी. सिंह ने कहा कि यह सम्मेलन पर्यावरणीय लक्ष्यों की प्राप्ति में शैक्षिक अनुसंधान की भूमिका को रेखांकित करता है। उन्होंने अपने वक्तव्य में कबीर, गालिब जैसे साहित्यकारों के उद्धरण देते हुए सतत विकास और शोध पर अपने विचार साझा किए।
मुख्य वक्ता, आईआरडी के अध्यक्ष और एमवीडीए के सचिव, डॉ. विनोद कुमार भट्ट ने पारंपरिक और आधुनिक कृषि पद्धतियों, वनीकरण, वैश्विक खेती और अनुसंधान की चुनौतियों पर अपने विचार व्यक्त किए।
सीईओ टर्न, आर. के. मुखर्जी ने आपदा प्रबंधन पर बात करते हुए बताया कि मानव और आपदाओं का साथ पुराना है। उन्होंने उदाहरणों के माध्यम से आपदा न्यूनीकरण के तरीकों को समझाया।
कार्यक्रम संयोजक, डॉ. बृज मोहन शर्मा ने कहा कि यह सम्मेलन संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (UN SDGs) को शैक्षिक अनुसंधान और नवाचार से जोड़ने का मंच प्रदान करता है।
सम्मेलन के प्रमुख विषय
✅ उच्च शिक्षा और सतत विकास:
शैक्षिक संस्थानों की भूमिका और शैक्षिक पाठ्यक्रमों में पर्यावरणीय जिम्मेदारी के समावेश पर चर्चा।
✅ नवाचार और पर्यावरणीय शोध:
पर्यावरणीय विज्ञान में नवीनतम प्रगति और सतत समाधानों की संभावनाएं।
✅ शोध में सतत प्रथाओं का एकीकरण:
शोध प्रक्रियाओं के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के उपाय।
✅ सतत अनुसंधान और नीति निर्धारण:
शैक्षिक गवर्नेंस और सतत शोध के बीच तालमेल स्थापित करने पर विचार।
✅ सतत कृषि और खाद्य सुरक्षा:
पारंपरिक एवं आधुनिक कृषि, जैविक खेती और वैश्विक कृषि प्रवृत्तियों पर गहन मंथन।
✅ भविष्य के अनुसंधान और नवाचार:
पर्यावरणीय समस्याओं के समाधान के लिए अनुसंधान की संभावनाओं पर चर्चा।
सम्मेलन में प्रमुख शोध प्रस्तुतियाँ
इस सम्मेलन में देशभर के 10 से अधिक विश्वविद्यालयों ने भाग लिया।
- कुल 379 शोध पत्र प्रस्तुत किए गए, जिनमें से 204 शोध पत्रों को प्रस्तुति के लिए चयनित किया गया।
- इन शोध पत्रों में पर्यावरणीय विज्ञान, जलवायु परिवर्तन, नवीकरणीय ऊर्जा, आपदा प्रबंधन और कृषि नवाचार जैसे विषयों पर गहन अध्ययन प्रस्तुत किए गए।
- शोध पत्रों के माध्यम से इको-फ्रेंडली अनुसंधान पद्धतियों को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया।
सम्मेलन में सम्मानित वैज्ञानिक एवं शिक्षाविद
सतत अनुसंधान, शिक्षा और नवाचार में उत्कृष्ट योगदान देने वाले वैज्ञानिकों एवं शिक्षाविदों को विशेष सम्मान प्रदान किया गया।
सम्मानित व्यक्ति:
- डॉ. रविंद्र शर्मा – एचआईएचटी
- ले. (डॉ.) ब्रिजलता चौहान – डीआईटी
- डॉ. नीती मिश्रा – डीआईटी
- डॉ. राकेश कुमार – ग्राफिक एरा डीम्ड यूनिवर्सिटी
- डॉ. मोहम्मद असलम – बीएफआईटी
- डॉ. पारुल सिंघल – माया देवी यूनिवर्सिटी
- डॉ. सौरभ प्रताप सिंह राठौर – आईएसए
- प्रो. सुषभान चौधरी – यूपीईएस
- प्रो. प्रसांति – यूपीईएस
- सिद्धार्थ स्वामी – दून विश्वविद्यालय
हरि राज सिंह ने बताया कि इस सम्मेलन में यूएनएसडीजी (UN SDGs) के तहत सस्टेनेबिलिटी से जुड़े विभिन्न शोध और नवाचार विचारों की व्यापक प्रस्तुति हुई।
सम्मेलन में प्रमुख उपस्थिति
- नीरज उनियाल – ग्रासरूट अवेयरनेस एंड टेक्निकल इंस्टीट्यूट ऑफ सोसायटी
- बालेंदु जोशी
- चंद्रा आर्य
- राम तीरथ मौर्य