राज्यपाल उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में हुए शामिल
राज्यपाल की उपस्थिति और विद्या वाचस्पति की उपाधि प्रदान
देहरादून/हरिद्वार: उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय, हरिद्वार के दीक्षांत समारोह में शुक्रवार को राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) गुरमीत सिंह सम्मिलित हुए। इस अवसर पर उन्होंने स्वामी गोविंद देव गिरी, डॉ. चिन्मय पंड्या और आचार्य श्रीनिवास बरखेड़ी को विद्या वाचस्पति (डी लिट) की उपाधि प्रदान की। इसके अलावा, उन्होंने छात्र-छात्राओं को स्वर्ण पदक, पीएचडी उपाधि तथा स्नातक एवं परास्नातक की डिग्रियां भी दीं।
संस्कृत: चमत्कारिक भाषा
राज्यपाल ने अपने संबोधन में संस्कृत को चमत्कारिक भाषा बताते हुए कहा कि इसके मंत्रों के उच्चारण मात्र से कार्य सिद्ध हो सकते हैं। उन्होंने इसे भारतीय संस्कृति की जड़ बताया और संस्कृत के संरक्षण और संवर्द्धन की दिशा में काम करने की आवश्यकता पर जोर दिया।
संस्कृत की भूमिका और युवाओं का योगदान
राज्यपाल ने युवाओं को भारत की संस्कृति का वाहक बताते हुए कहा कि संस्कृत भाषा के विकास और शोध में उनका महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है। उन्होंने कहा, “हमारे देश में 65 प्रतिशत आबादी युवा है, और उन्हें सही मार्गदर्शन देकर दुनिया को बदला जा सकता है।” संस्कृत को शिक्षा का सर्वोच्च साधन मानते हुए उन्होंने इसके गहन अध्ययन की अपील की।
संस्कृत का ऐतिहासिक महत्व
संस्कृत को विश्व की प्राचीनतम भाषाओं में से एक बताते हुए राज्यपाल ने कहा कि इसका साहित्य विशाल और ज्ञान का भंडार है। उन्होंने कहा, “जब दुनिया के अन्य हिस्सों में लोग सामान्य जीवन जी रहे थे, तब हमारे ऋषि-मुनि मानवता के कल्याण के लिए साधना कर रहे थे।” उन्होंने संस्कृत के ज्ञान को आधुनिक दुनिया और बाजार की जरूरतों से जोड़ने पर जोर दिया।
कोविड और संस्कृत की प्रासंगिकता
राज्यपाल ने कोविड महामारी का उदाहरण देते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति में ‘नमस्ते’ का महत्व आज दुनिया ने समझा। उन्होंने संस्कृत की दिव्यता, पवित्रता और स्वच्छता को बनाए रखने के लिए सभी से योगदान की अपील की।
उत्तराखण्ड और संस्कृत का गहरा संबंध
राज्यपाल ने उत्तराखण्ड को देवभूमि बताते हुए कहा कि बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री जैसे आस्था के केंद्र यहां स्थित हैं। उत्तराखण्ड भारत का पहला राज्य है जिसने संस्कृत को द्वितीय भाषा का दर्जा दिया। उन्होंने कहा कि संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना आधुनिक विज्ञान और अध्ययन को बढ़ावा देने के लिए की गई है।
मुख्य बिंदु:
- संस्कृत विश्व की प्राचीनतम और चमत्कारिक भाषा।
- युवाओं को संस्कृत के विकास और प्रचार-प्रसार में भूमिका निभाने की अपील।
- उत्तराखण्ड ने संस्कृत को द्वितीय भाषा का दर्जा देकर एक ऐतिहासिक कदम उठाया।
- संस्कृत का ज्ञान आधुनिक शोध और बाजार के इकोसिस्टम से जोड़ने की आवश्यकता।