नागपुर, 2 अक्टूबर 2025 राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने गुरुवार को विजयादशमी के पावन अवसर पर नागपुर के रेशिमबाग मैदान में दिए गए अपने वार्षिक भाषण में पड़ोसी देशों में व्याप्त अशांति और सत्ता परिवर्तनों पर गहरी चिंता जताई। उन्होंने श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल जैसे देशों में जनाक्रोश से उपजी उथल-पुथल का जिक्र करते हुए भारत को आगाह किया कि ऐसी ही विघटनकारी शक्तियां देश के अंदरूनी और बाहरी मोर्चों पर सक्रिय हैं। भागवत ने जोर देकर कहा कि देशहित में परिवर्तन केवल लोकतांत्रिक मार्ग से ही लाया जाए, ताकि वैश्विक ताकतें अवसर का लाभ न उठा सकें। आरएसएस के शताब्दी वर्ष के इस उत्सव में भागवत ने नक्सलवाद पर नियंत्रण, वैज्ञानिक प्रगति की चुनौतियां और हिंदू एकता जैसे मुद्दों पर भी प्रकाश डाला, जो राष्ट्र निर्माण की दिशा में एक व्यापक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है।
पड़ोसी देशों की अस्थिरता: जनाक्रोश से सत्ता परिवर्तन, भारत के लिए खतरे की घंटी
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने अपने भाषण की शुरुआत पड़ोसी देशों में हालिया घटनाक्रमों से की। उन्होंने श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल में जनता के गुस्से से उपजे हिंसक विस्फोटों का हवाला देते हुए कहा कि इन देशों में सत्ता परिवर्तन ने क्षेत्रीय स्थिरता को खतरे में डाल दिया है। भागवत ने चेताया कि ये घटनाएं संयोग मात्र नहीं हैं, बल्कि संगठित प्रयासों का नतीजा हैं, जो भारत जैसे उभरते राष्ट्रों को लक्ष्य बनाते हैं।
“ये देश हमारी सांस्कृतिक और सभ्यतागत विरासत से जुड़े हैं, एक परिवार के ही अंग हैं। इनकी शांति, समृद्धि और सुख-समृद्धि सुनिश्चित करना न केवल हमारा नैतिक कर्तव्य है, बल्कि राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए अनिवार्य भी।” — मोहन भागवत
भागवत ने स्पष्ट किया कि असंतोष के मूल कारण सरकार और समाज के बीच बढ़ती दूरी, योग्य प्रशासकों की कमी और विकास का अभाव हैं। लेकिन हिंसा से परिवर्तन स्थायी नहीं होता; यह केवल वैश्विक शक्तियों को हस्तक्षेप का मौका देता है। उन्होंने भारत को सलाह दी कि ऐसी परिस्थितियों से बचने के लिए लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को मजबूत किया जाए।
भारत में सक्रिय विघटनकारी ताकतें: अंदरूनी-बाहरी खतरे, लोकतंत्र ही एकमात्र मार्ग
भागवत ने भारत को सीधे निशाने पर लेते हुए कहा कि अशांति फैलाने वाली शक्तियां देश के भीतर और बाहर दोनों जगह सक्रिय हैं। वे सामाजिक विभाजन, धार्मिक तनाव और आर्थिक असमानता को हथियार बनाकर राष्ट्र को कमजोर करने की साजिश रच रही हैं। उन्होंने जोर दिया कि परिवर्तन की मांग न्यायोचित हो सकती है, लेकिन हिंसक रास्ता अपनाने से केवल अराजकता फैलती है।
भागवत ने लोकतांत्रिक तरीकों—चुनाव, संवाद और जनभागीदारी—को ही सच्चा समाधान बताया। “हिंसा से उत्पन्न शून्य में विदेशी ताकतें अपना खेल खेलने लगती हैं। हमें सजग रहना होगा और एकजुट होकर राष्ट्रहित की रक्षा करनी होगी।” यह बयान वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में भारत की बढ़ती भूमिका को रेखांकित करता है, जहां पड़ोसी देशों की अस्थिरता सीधे प्रभावित कर सकती है।
नक्सलवाद पर सराहना और आगे की राह: विकास, न्याय और सद्भाव की व्यापक योजना जरूरी
आरएसएस प्रमुख ने नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सरकार के प्रयासों की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि दृढ़ कदमों और जनजागरूकता से चरमपंथी नक्सल आंदोलन पर काफी हद तक काबू पा लिया गया है। नक्सलवाद की जड़ें शोषण, अन्याय, विकास की कमी और प्रशासनिक उदासीनता में थीं, जो अब दूर हो रही हैं।
फिर भी, भागवत ने चेताया कि स्थायी शांति के लिए एक समग्र कार्य योजना आवश्यक है। “इन क्षेत्रों में न्याय, विकास, सद्भाव, सहानुभूति और एकता सुनिश्चित करने वाली योजना बने। नक्सलवाद का खोखलापन और क्रूरता अब लोगों को समझ आ गई है, लेकिन हमें इन क्षेत्रों को मुख्यधारा से जोड़ना होगा।” यह सुझाव आदिवासी क्षेत्रों के समग्र उत्थान पर केंद्रित है, जो राज्य सरकारों के लिए नीतिगत दिशा प्रदान करता है।
वैज्ञानिक प्रगति की चुनौतियां: पर्यावरण क्षति, सामाजिक विघटन और हिंदू दर्शन का समाधान
भागवत ने वैश्विक स्तर पर वैज्ञानिक और तकनीकी उन्नति के दोहरे प्रभाव पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि ये प्रगतियां जीवन को सुगम बना रही हैं, लेकिन मानव अनुकूलन की गति धीमी होने से समस्याएं बढ़ रही हैं। पर्यावरणीय क्षति, सामाजिक-पारिवारिक बंधनों का कमजोर होना, युद्ध-संघर्ष, प्राकृतिक आपदाएं और दैनिक जीवन में बढ़ती शत्रुता इसके उदाहरण हैं।
“समाधान के प्रयास हुए हैं, लेकिन वे इन समस्याओं को रोकने या जड़ से समाप्त करने में असफल साबित हुए। विकृत शक्तियां संस्कृति, आस्था और परंपराओं को नष्ट करने पर तुली हैं, जो मानवता को और गहरा संकट में धकेलेंगी।” भागवत ने भारत के दर्शन—अहिंसा, सद्भाव और प्रकृति संरक्षण—को वैश्विक समाधान के रूप में प्रस्तुत किया। “विश्व भारतीय दृष्टिकोण का इंतजार कर रहा है। हमें हिंदू एकता के माध्यम से इसकी मिसाल कायम करनी होगी।”
आरएसएस शताब्दी वर्ष का संदेश: हिंदू एकता और राष्ट्र निर्माण पर बल
विजयादशमी के इस उत्सव में आरएसएस ने अपने शताब्दी वर्ष का जश्न मनाया। भागवत ने स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए कहा कि संघ की शाखाएं मानवीय मूल्यों और सामाजिक एकजुटता को मजबूत करने का माध्यम हैं। उन्होंने हिंदू समाज को जाति-धर्म के आधार पर बंटने से बचाने की अपील की। कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस जैसे गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।
भागवत का यह भाषण न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा और सामाजिक सद्भाव पर केंद्रित था, बल्कि वैश्विक चुनौतियों के बीच भारत की भूमिका को रेखांकित करता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह संदेश वर्तमान राजनीतिक माहौल में प्रासंगिक है, जहां क्षेत्रीय अस्थिरता भारत के लिए खतरा बन सकती है।