रजत जयंती सत्र में 25 सालों का हिसाब-किताब
उत्तराखंड विधानसभा के राज्य स्थापना के रजत जयंती वर्ष पर आयोजित विशेष सत्र के तीसरे दिन सदन मूल निवास, गैरसैंण राजधानी, महिला सुरक्षा और राज्य की 25 साल की यात्रा पर केंद्रित रहा। यह सत्र चिंतन-मनन के उद्देश्य से बुलाया गया था, जिसमें सभी विधायकों को राज्य के विकास, कमियों और भविष्य की दिशा पर अपने विचार रखने का अवसर दिया गया। हालांकि, भाजपा के वरिष्ठ विधायक विनोद चमोली के भाषण ने सदन को राजनीतिक रणक्षेत्र में बदल दिया। उन्होंने दलगत राजनीति से ऊपर उठकर बोलने का दावा किया, लेकिन उनके शब्दों ने विपक्षी खेमे में आग लगा दी। मूल निवास, गैरसैंण और एन.डी. तिवारी की कार्य संस्कृति पर किये गए प्रहारों ने सत्ता और विपक्ष के बीच तीखी नोकझोंक को जन्म दिया, जिससे सदन में कई बार हंगामा मचा।
विनोद चमोली का भाषण: एन.डी. तिवारी से लेकर भ्रष्टाचार की जड़ तक
भाजपा विधायक विनोद चमोली ने अपने भाषण की शुरुआत “दलगत राजनीति से ऊपर उठकर” बोलने का वादा करते हुए की। उन्होंने राज्य गठन आंदोलन के दौरान कांग्रेस के विरोध को याद दिलाया और कहा:
“जिन लोगों ने उत्तराखंड राज्य गठन का विरोध किया था, उन्हें भूलना नहीं चाहिए।”
फिर उन्होंने 2002 के पहले विधानसभा चुनाव पर टिप्पणी की:
- जनता ने कांग्रेस को चुना और एन.डी. तिवारी पहले मुख्यमंत्री बने।
- लेकिन उत्तर प्रदेश की भ्रष्ट और पक्षपातपूर्ण कार्य संस्कृति को उत्तराखंड में लाया गया।
- मुख्यमंत्री विवेकाधीन कोष की बंदरबांट, लाल बत्तियों का वितरण और अपनों को खुश करने की राजनीति यहीं से शुरू हुई।
चमोली ने कांग्रेस पर तंज कसा:
“कांग्रेस गर्व से कहती है कि उसने 5 साल एक मुख्यमंत्री दिया, लेकिन यह नहीं बताती कि भ्रष्टाचार की नींव भी उसी ने रखी।”
उन्होंने कहा कि “हम आज तक उस कार्य संस्कृति को झेल रहे हैं” और यह उत्तराखंड आंदोलन के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है।
मूल निवास पर विस्फोटक बयान: “उत्तराखंड बाहर वालों की धर्मशाला बन गया”
सदन में सबसे बड़ा विवाद मूल निवास पर छिड़ा। चमोली ने इसे “आज का सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा” बताया और कहा:
- स्थायी निवास की बात होती है, लेकिन मूल निवास का अस्तित्व खत्म हो गया।
- उत्तराखंड का असली हित मूल निवास में निहित है, जो:
- पहाड़ और मैदान के मूल निवासियों को समान अधिकार देता है।
- बाहरी लोगों की बढ़ती आबादी से राज्य की पहचान बचाता है।
- “कोई भी बाहर से आता है और उत्तराखंडी का हितैषी बन जाता है। उत्तराखंड धर्मशाला बन चुका है।”
उन्होंने सत्ता और विपक्ष दोनों को दलगत राजनीति से ऊपर उठकर इस पर सोचने की अपील की। लेकिन यह बयान विपक्ष के लिए लाल झंडी साबित हुआ।
विपक्ष का पलटवार: हरिद्वार विधायक और उमेश कुमार ने घेरा
चमोली के बयान पर:
- कांग्रेस विधायक वीरेंद्र जाति और रवि बहादुर ने तीखी आपत्ति जताई।
- हरिद्वार के कई विधायक खड़े होकर चमोली को घेरने लगे।
- निर्दलीय विधायक उमेश कुमार (खानपुर) ने बीच में कूदते हुए कहा:
“आपको मूल निवास और गैरसैंण पर अपना स्टैंड क्लियर करना चाहिए।”
इस पर सदन में हंगामे की स्थिति बन गई। चमोली ने भी जवाबी हमला किया:
“आप पहाड़ के चौधरी मत बनें। हमें न बताएं कि पहाड़ के लिए क्या करना है।”
गैरसैंण पर दोहरी लड़ाई: “फंक्शनल बनाने के लिए ACS स्तर का अधिकारी चाहिए”
चमोली ने गैरसैंण को लेकर भी साफ रुख अपनाया:
- बीजेपी सरकार ने ही इसे ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया।
- अब इसे स्थायी या फंक्शनल बनाने की जरूरत है।
- ACS स्तर का अधिकारी तैनात हो और विकास का रोडमैप बने।
उमेश कुमार के टोकने पर चमोली ने याद दिलाया:
“जब ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित हुई थी, तब मैं ही एकमात्र व्यक्ति था जिसने कहा था कि इसे स्थायी राजधानी की दिशा में विकसित किया जा सकता है।”
महिला सुरक्षा और अन्य मुद्दे: पीछे छूटे, लेकिन चर्चा में शामिल
सदन में महिला सुरक्षा पर भी चिंता जताई गई:
- महिलाओं पर बढ़ते अत्याचार
- सुरक्षित परिवहन व्यवस्था
- कानून-व्यवस्था में सुधार
कुछ विधायकों ने शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार पर भी सुझाव दिए, लेकिन मूल निवास और गैरसैंण के विवाद ने अन्य मुद्दों को पृष्ठभूमि में धकेल दिया।
चमोली का अंतिम संदेश: “राज्यहित में झेलने को तैयार”
अपने भाषण के अंत में चमोली ने कहा:
“राज्यहित में बोलने पर यदि मुझे कुछ झेलना पड़े, तो मैं तैयार हूं। मैंने राज्य आंदोलन के समय भी झेला है, अब भी झेल रहा हूं।”
उन्होंने कांग्रेस विधायकों को नसीहत दी:
“जब राज्यहित की बात हो, तो समर्थन करें, राजनीति न करें।”
समापन: दलगत राजनीति से ऊपर उठने की अपील, लेकिन विवाद बना रहा
विनोद चमोली ने अंत में अपील की कि मूल निवास, गैरसैंण, महिला सुरक्षा जैसे मुद्दों पर सत्ता-विपक्ष एकजुट होकर सोचे। उन्होंने कहा:
“ये उत्तराखंड का भविष्य है, न कि किसी एक पार्टी का।”
हालांकि, सदन में हंगामे के बाद कार्यवाही कुछ देर के लिए स्थगित करनी पड़ी। यह सत्र चिंतन का मंच बनने की बजाय राजनीतिक ध्रुवीकरण का अखाड़ा बन गया।