साहित्य, सिनेमा और समाज के संगम का अद्भुत उत्सव
देहरादून। देहरादून लिटरेचर फेस्टिवल (डीडीएलएफ) के छठे संस्करण का समापन तीन दिनों तक चले साहित्य, सिनेमा और समाज पर केंद्रित सत्रों के बाद हो गया। दून इंटरनेशनल स्कूल में आयोजित इस महोत्सव में हर वर्ग के दर्शकों ने भाग लिया।
पुरस्कार और चर्चाओं का आगाज़
फेस्टिवल के अंतिम दिन का आरंभ “शिवानी-आयरन लेडी ऑफ द हिल्स” पुरस्कार समारोह से हुआ, जिसमें गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय की प्रोफेसर और लेखिका मंजुला राणा को सम्मानित किया गया। इसके बाद “स्त्रीवाद और समाज” पर चर्चा हुई, जिसमें लेखिका जयंती रंगनाथन, अदिति माहेश्वरी गोयल और नवीन चौधरी जैसे प्रतिष्ठित वक्ताओं ने हिस्सा लिया।
मंजुला राणा ने कहा, “महिलाएं शक्ति हैं और आने वाली पीढ़ी के लिए सब कुछ करने को तैयार रहती हैं। महिला सशक्तिकरण हमारी सामूहिक प्रगति के लिए अनिवार्य है।”
सामाजिक विकास में शिक्षा का महत्व
उत्तराखंड के डीजीपी अभिनव कुमार ने सामाजिक विकास में शिक्षा के महत्व पर प्रकाश डाला। इसके बाद आधुनिक शैक्षिक रणनीतियों पर एक सत्र आयोजित हुआ, जिसमें कर्नल गोपाल करुणाकरण ने विचार व्यक्त करते हुए कहा, “सवाल अधिक महत्वपूर्ण हैं। हम अब गैर-गूगलेबल प्रश्नों की ओर बढ़ रहे हैं।”
धरोहर, समुदाय और स्थिरता पर संवाद
“हेरिटेज, कम्युनिटी, सस्टेनेबिलिटी” विषय पर भी एक चर्चात्मक सत्र आयोजित किया गया। लेखिका लेडी किश्वर देसाई ने विभाजन संग्रहालय की स्थापना के अनुभव साझा किए और कहा कि विभाजन संग्रहालय का उद्देश्य लोगों की कहानियों को जीवित रखना है।
कल्याण, कविता और ऐतिहासिक अध्ययन
फेस्टिवल के दौरान मन-शरीर कल्याण पर भी एक सत्र हुआ जिसमें डॉ. ब्लॉसम कोचर और डॉ. डिंपल जांगड़ा ने स्वास्थ्य और अरोमाथेरेपी के फायदों पर चर्चा की। वहीं, कविता सत्र “कविता की प्रयोगशाला” में यतीन्द्र मिश्रा और प्रताप सोमवंशी ने दर्शकों को कविता की विविधता से परिचित कराया।
इतिहास और सिनेमा में भारत की पहचान
मुगल साम्राज्य और भारतीय सिनेमा पर भी आकर्षक सत्र आयोजित किए गए। “सन्स ऑफ बाबर” सत्र में लेखक सलमान खुर्शीद ने कहा, “भारत एक ऐसी भूमि है जो सभी को अपने में समाहित कर लेती है।” वहीं, अभिनेत्री संध्या मृदुल ने शबाना आज़मी के योगदान को याद करते हुए अपनी पहली कविता संग्रह “अनटैम्ड” का विमोचन किया।
उर्दू साहित्य और अन्य प्रमुख आकर्षण
फेस्टिवल में उर्दू साहित्य के अद्भुत सत्र “बज्म-ए-उर्दू” में गज़ल गायक पेनाज़ मसानी और कवि शकील जमाली की प्रस्तुतियों ने लोगों का मन मोह लिया। इसके अतिरिक्त, “लैला मजनू” के स्क्रीन अनुकूलन पर भी सत्र हुआ, जिसमें निर्देशक साजिद अली और अभिनेता अविनाश तिवारी ने हिस्सा लिया।
समापन और भविष्य की ओर
फेस्टिवल के संस्थापक समरांत विरमानी ने डीडीएलएफ की सफलता पर गर्व व्यक्त करते हुए कहा, “डीडीएलएफ एक सांस्कृतिक मील का पत्थर बन गया है, जो साल दर साल गहरी चर्चाओं और कनेक्शनों को बढ़ावा देता है।”
फेस्टिवल का समापन इम्तियाज अली के सत्र के साथ हुआ, जिसमें उन्होंने साहित्य और क्षेत्रीय आवाजों की शक्ति पर विचार साझा किए।