गिफ्ट्स, वोट और रोज़मर्रा की राजनीति: चुनावों में शराब और पैसों की नई समझ

गिफ्ट्स, वोट और रोज़मर्रा की राजनीति: चुनावों में शराब और पैसों की नई समझ

लेखक: देवेंद्र कुमार बुडाकोटी


चुनावी मौसम की “मामूल” टूलकिट

भारत में चुनावों के दौरान पुलिस और आबकारी विभाग द्वारा शराब और बेहिसाब नकदी की जब्ती अब आम खबर बन चुकी है। चाहे राष्ट्रीय, राज्य या पंचायत चुनाव हों, मीडिया इन्हें वोटरों को भौतिक प्रलोभन देने की कोशिश के रूप में पेश करती है। समय के साथ यह चुनावी टूलकिट का हिस्सा माना जाने लगा है।


शराब और पैसों की पेशकश: वोट खरीदने का जरिया या अनुष्ठान?

आम धारणा यही है कि शराब या पैसे की पेशकश वोट खरीदने का तरीका है। इसे क्लायंटेलिज़्म (हस्तगत समर्थन) की अवधारणा से जोड़ा जाता है।
लेकिन उत्तराखंड पंचायत चुनावों के दौरान हुए फील्डवर्क ने अलग तस्वीर दिखाई।

  • कई मतदाताओं ने शराब स्वीकार की, लेकिन वोट जातीय निष्ठा, पारिवारिक संबंध और सामुदायिक जुड़ाव के आधार पर दिया।
  • यह संकेत है कि मतदाता निष्क्रिय नहीं, बल्कि विवेकपूर्ण फैसले लेते हैं।
  • शराब यहाँ प्रभाव डालने का साधन नहीं, बल्कि चुनावी अनुष्ठान की तरह देखी जाती है।

मतदाता: निष्क्रिय नहीं, बल्कि सक्रिय खिलाड़ी

मतदाता उपहार स्वीकार करते हैं, लेकिन वोट देने का फैसला अपने अनुभव, निष्ठा और विवेक से करते हैं।

  • शराब का वितरण एक राजनीतिक अनुष्ठान की तरह है – जैसे चुनावी उत्सव का हिस्सा
  • पार्टियों से अपेक्षा होती है कि वे “उपस्थिति दर्ज कराएँ”, पर मतदाता अपनी प्राथमिकताएँ नहीं भूलते

स्थानीय राजनीति: रिश्ते और पहचान का खेल

यह धारणा को चुनौती देता है कि हर बोतल = एक वोट।

  • चुनाव सिर्फ संसाधन आधारित लेन-देन नहीं, बल्कि रिश्तों, भरोसे और पहचान पर आधारित होते हैं।
  • लोग वोट इसलिए भी देते हैं क्योंकि उम्मीदवार “हममें से एक” है।

चुनाव: रोज़मर्रा के सामाजिक जीवन का हिस्सा

भारतीय चुनाव सिर्फ वोटिंग नहीं, बल्कि सामाजिक नेटवर्क और पहचान का उत्सव हैं।

  • गाँव की चौपाल, चाय की दुकान, आँगन और बैठकों में राजनीतिक अर्थ गढ़ा जाता है।
  • लोग पुराने वादे याद करते हैं, बहस करते हैं और फिर अपने तरीके से निर्णय लेते हैं।

सुर्खियों से आगे देखने की ज़रूरत

भारतीय चुनाव को समझने के लिए सिर्फ शराब और नकदी की जब्ती से आगे देखना होगा।

  • राजनीति का असली अर्थ गाँवों के संवाद और रिश्तों में छिपा है।
  • यह लोकतंत्र के सामाजिक प्रदर्शन और सामूहिक पहचान का हिस्सा है।

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