खस्ताहाल सड़कें और अवैध निर्माण: भारत की अर्थव्यवस्था पर गहराता संकट
लेखक: देवेंद्र कुमार बुडाकोटी
सड़कों की दयनीय स्थिति: गुणवत्ता और भ्रष्टाचार का गहरा रिश्ता
भारत में सड़कों की हालत अक्सर चिंता का विषय बनी रहती है। न तो इनका निर्माण मानकों के अनुरूप होता है और न ही इनका रखरखाव ठीक ढंग से हो पाता है। आम नागरिक लगातार इस व्यवस्था और उससे जुड़े भ्रष्टाचार की शिकायत करते हैं। इस संदर्भ में मैंने हिमालयी क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं पर काम कर चुके प्रसिद्ध भूवैज्ञानिक डॉ. दिनेश सती से बातचीत की। उन्होंने एक सटीक टिप्पणी की, “जब तक सड़क कच्ची, तब तक नौकरी पक्की।” उनका मतलब था कि सड़कों को जानबूझकर निम्न गुणवत्ता वाला बनाया जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि निर्माण की राशि का 30 से 40 प्रतिशत हिस्सा ‘सिस्टम’ को सुचारु बनाने में खर्च हो जाता है, जिससे ठेके जल्दी पास हो सकें। यही कारण है कि कुछ विभागों को ‘मलाईदार’ माना जाता है। इस व्यवस्था में उच्च गुणवत्ता वाली सड़कों का निर्माण और उनका नियमित रखरखाव केवल एक सपना बनकर रह जाता है। बार-बार मरम्मत के लिए नए-नए टेंडर निकाले जाते हैं, जिससे घटिया निर्माण का चक्र चलता रहता है।
प्राकृतिक आपदाओं से परे: मानवीय लापरवाही की जड़ें
प्राकृतिक आपदाओं को सड़कों के नुकसान का बहाना बनाया जाता है, खासकर हिमालयी क्षेत्रों में। लेकिन यह समझना जरूरी है कि यूरोपीय देशों में भारी बर्फबारी और बारिश के बावजूद सड़कें सालों तक टिकाऊ रहती हैं। तो वहां यह कैसे संभव हो पाता है? हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में हाल की आपदाओं ने जान-माल का बड़ा नुकसान दिखाया। बादल फटने या भूस्खलन जैसी प्राकृतिक घटनाओं को रोका नहीं जा सकता, लेकिन जमीनी स्तर पर आपदा प्रबंधन और नुकसान कम करने के उपायों में गंभीर चूक साफ दिखती है। इस साल की मानसूनी आपदाओं में क्षतिग्रस्त हुई इमारतों में से ज्यादातर नदी किनारों और ढलानों पर बिना अनुमति के बनाई गई थीं। इन अवैध निर्माणों को वर्षों से प्रशासनिक अनदेखी के चलते बढ़ावा मिला। मेरी राय में इसका कारण यह है, “जब तक निर्माण गैरकानूनी, तब तक रहेगी कर वसूली।” आपदा के वक्त ये ढांचे सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बने, लेकिन राहत कार्य शुरू होते ही यह मुद्दा पीछे छूट गया। सच्चाई यह है कि इन निर्माणों के पीछे संबंधित विभागों की मिलीभगत होती है, जहां शुरुआत से अंत तक रिश्वत का खेल चलता है—तब तक कोई बड़ी त्रासदी न हो जाए।
अवैध निर्माण का विस्तार: भूकंप जोन में भी खतरा
चिंता की बात यह है कि अवैध निर्माण केवल आपदा संभावित क्षेत्रों तक सीमित नहीं हैं। वे उन क्षेत्रों में भी पाए जाते हैं, जहां भूकंप जैसी आपदा कभी भी भारी तबाही मचा सकती है। सड़क और परिवहन किसी भी देश की बुनियादी ढांचे का आधार होते हैं। हाल के वर्षों में राष्ट्रीय राजमार्ग नेटवर्क में कुछ सुधार हुए हैं, लेकिन समग्र स्थिति अभी भी चिंताजनक है। अवैध निर्माण न केवल जान-माल के नुकसान का कारण बनते हैं, बल्कि पर्यटन जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र को भी गहरा आघात पहुंचा रहे हैं, खासकर हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों में।
पर्यटन और अर्थव्यवस्था: समय की मांग है ठोस कदम
पर्यटन इन राज्यों की अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा है और युवाओं के लिए रोजगार का स्रोत भी। लेकिन अनियंत्रित और अवैध निर्माण इस क्षेत्र को कमजोर कर रहे हैं। अब समय आ गया है कि पर्यटन के नाम पर हो रहे इस अनियंत्रित विकास पर गंभीरता से ध्यान दिया जाए। तत्काल प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है, ताकि भविष्य में पर्यटन इन राज्यों की अर्थव्यवस्था को मजबूत कर सके और युवाओं को रोजगार के नए अवसर प्रदान करे। सड़कों की मरम्मत और अवैध निर्माण पर रोक लगाने के लिए पारदर्शिता और सख्त नीतियों की मांग बढ़ती जा रही है।
लेखक परिचय: देवेंद्र कुमार बुडाकोटी समाजशास्त्री हैं और विकास क्षेत्र में चार दशकों से सक्रिय हैं।