देहरादून।
प्राइवेट स्कूलों में मनमाने ढंग से फीस वसूली के विरोध में अब दून की सामाजिक संस्थाएं मुखर हो गई हैं। संयुक्त नागरिक संगठन द्वारा आयोजित संवाद में प्रतिभाग कर विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों ने सरकार से मांग की कि उत्तर प्रदेश की तर्ज पर उत्तराखंड में भी एक कठोर कानून बनाया जाए, जिससे स्कूल संचालकों की मनमानी पर रोक लगाई जा सके।
प्रतिनिधियों ने कहा कि राज्य में वर्ष 2006 से “उत्तराखंड गैर सहायता प्राप्त निजी व्यावसायिक शिक्षण संस्थान (प्रवेश विनिमय एवं शुल्क निर्धारण) अधिनियम” का मसौदा फाइलों में धूल फांक रहा है, जिसे आज तक लागू नहीं किया गया है। जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों की निष्क्रियता के कारण यह कानून आज तक अस्तित्व में नहीं आ सका।
प्रमुख मुद्दे और समस्याएं
- मनमानी फीस वसूली:
स्कूलों द्वारा शिक्षण, परीक्षा, स्मार्ट क्लास, कंप्यूटर, इवेंट, यूनिफॉर्म, और अन्य गतिविधियों के नाम पर अलग-अलग शुल्क वसूले जा रहे हैं, जो पूरी तरह अन्यायपूर्ण हैं। - विशेष दुकानों से खरीद की बाध्यता:
किताबें, जूते, यूनिफॉर्म आदि विशेष दुकानों से खरीदने की अनिवार्यता से अभिभावकों को महंगे दाम चुकाने पड़ रहे हैं। - कानूनी ढांचे की कमी:
शिक्षा विभाग व प्रशासन के पास ऐसे कोई अधिकार नहीं हैं जिससे स्कूलों की मान्यता रद्द की जा सके या आर्थिक दंड लगाया जा सके।
कठोर कानून की आवश्यकता क्यों?
प्रतिनिधियों का कहना है कि बिना ठोस कानून के केवल नोटिस, चेतावनी या निर्देश देने की कार्यवाही का कोई असर नहीं हो रहा। उत्तर प्रदेश की तरह “स्ववित्त पोषित स्वतंत्र विद्यालय शुल्क अधिनियम 2018” की तरह उत्तराखंड में भी कानून लागू करना आवश्यक है ताकि अभिभावकों का आर्थिक शोषण बंद हो सके।
सरकारी स्कूलों की हालत पर भी सवाल
संवाद में यह भी उजागर किया गया कि सरकारी स्कूलों की गिरती दशा के कारण ही अभिभावकों का रुझान निजी स्कूलों की ओर बढ़ा है। सरकार को निजी स्कूलों से सीख लेकर सरकारी स्कूलों की व्यवस्थाएं सुधारनी होंगी।
आरटीई उल्लंघन और संस्थाओं की निष्क्रियता
शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2011 के तहत दर्ज शिकायतों पर जांच तो हुई लेकिन दंडात्मक कार्रवाई नहीं हो सकी। बाल अधिकार संरक्षण आयोग व बाल कल्याण समिति जैसे संस्थान भी प्रभावी रूप से काम नहीं कर पा रहे हैं।
डीएम सविन बंसल के प्रयासों की सराहना
संवाद में जिलाधिकारी सविन बंसल द्वारा प्राइवेट स्कूलों के खिलाफ सख्त कदम उठाने की सराहना की गई और राज्यपाल व मुख्य सचिव से उन्हें देहरादून में आगामी तीन वर्षों तक स्थायी नियुक्ति देने की मांग भी रखी गई।