मसूरी के 15% हिस्से में उच्च जोखिम: भूस्खलन का खतरा बढ़ा

पृथ्वी प्रणाली विज्ञान पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन ने दी चेतावनी

मसूरी, 26 अक्टूबर 2025: उत्तराखंड की खूबसूरत पहाड़ी रानी मसूरी अब अपनी सुंदरता के साथ-साथ भूस्खलन के खतरे की वजह से चर्चा में है। 15 सितंबर को हुई भारी बारिश और भूस्खलन की घटनाओं ने वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों के हालिया अध्ययन को सही साबित कर दिया, जिसमें चेतावनी दी गई थी कि मसूरी का 15% क्षेत्र अब अत्यधिक जोखिम वाले जोन में आ चुका है। यह शोध “जनरल ऑफ अर्थ साइंस सिस्टम” पत्रिका में प्रकाशित हुआ है, जो आधुनिक तकनीकों जैसे भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस), उपग्रह चित्र और सांख्यिकीय विश्लेषण पर आधारित है।

अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष: जोखिम का आकलन

वैज्ञानिकों ने ढलानों की दिशा, मिट्टी की संरचना, चट्टानों के प्रकार, भूमि उपयोग, जल निकासी और वर्षा पैटर्न का गहन विश्लेषण किया। अध्ययन के अनुसार, मसूरी के 15% क्षेत्र में उच्च जोखिम, 29% क्षेत्र में मध्यम जोखिम और 56% क्षेत्र में कम या बहुत कम जोखिम है। वाडिया संस्थान के वरिष्ठ भूवैज्ञानिक डॉ. एससी वैदेस्वरन ने बताया कि मसूरी की ढलानें क्रोल चूना-पत्थर से बनी हैं, जो भंगुर और कमजोर हैं। कई जगहों पर ढलानों का झुकाव 60 डिग्री से अधिक है, जिससे मामूली बारिश या भूकंप से मिट्टी खिसकने का खतरा बढ़ जाता है।

मानव हस्तक्षेप: प्राकृतिक जोखिम को बढ़ाने वाला कारक

वैज्ञानिकों का मानना है कि खतरा केवल प्राकृतिक नहीं है। बिना योजना के निर्माण, सड़क कटाई और जंगलों की अंधाधुंध कटाई ने ढलानों को अस्थिर कर दिया है। अध्ययन में बाटाघाट, जॉर्ज एवरेस्ट, केम्पटी फॉल, खट्टा पानी, लाइब्रेरी रोड, झडीपानी, गलोगीधार और हाथीपांव जैसे संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान की गई। 15 सितंबर की बारिश में इन क्षेत्रों में सड़कें धंस गईं, घरों में दरारें आईं और लोगों को सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित करना पड़ा।

वैज्ञानिक सुझाव: जोखिम कम करने के उपाय

शोध में तत्काल कार्रवाई के लिए सुझाव दिए गए हैं, जिसमें उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में नया निर्माण बंद करना, सड़क कटाई और विस्फोट पर सख्त नियंत्रण, वन कटाई पर रोक और वृक्षारोपण, हर निर्माण के लिए भूगर्भीय जांच अनिवार्य करना, और जल निकासी व्यवस्था मजबूत करना शामिल है। डॉ. वैदेस्वरन ने जोर देकर कहा कि इन कदमों के बिना मसूरी का भविष्य खतरे में है।

पर्यावरणविद और स्थानीय लोगों की चिंता

पर्यावरण लेखक जय सिंह रावत ने इसे चेतावनी करार देते हुए कहा कि हिमालय जैसे नाजुक क्षेत्र में विकास तभी टिकाऊ होगा, जब प्रकृति की सीमाओं का सम्मान हो। अन्यथा, मसूरी जैसे शहर बर्बादी का शिकार हो सकते हैं। स्थानीय दुकानदार सुनील राणा ने शिकायत की कि नई सड़कें और होटल बनते हैं, लेकिन जल निकासी और पहाड़ की सुरक्षा पर ध्यान नहीं दिया जाता। उन्होंने डर जताया कि अगली बारिश बड़ी त्रासदी ला सकती है।

हिमालय के लिए सबक: संतुलित विकास की जरूरत

वैज्ञानिकों का कहना है कि यह अध्ययन मसूरी के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे हिमालय क्षेत्र के लिए एक सबक है। अनियंत्रित विकास और प्राकृतिक संतुलन की अनदेखी से भविष्य में और बड़े नुकसान का खतरा है। मसूरी को बचाने के लिए तत्काल नीतिगत बदलाव और जागरूकता जरूरी है, ताकि इस पहाड़ी रानी की सुंदरता बनी रहे।

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