वन विभाग कर रहा बुग्यालों का संरक्षण
इंसानी गतिविधियों और जलवायु परिवर्तन से घास के मैदानों की स्थिति बिगड़ रही
देहरादून, आजखबर। उच्च हिमालय में 3500 मीटर से 4500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित बुग्याल, जो हिम रेखा और ट्री लाइन के बीच का क्षेत्र है, इकोलॉजी का अहम हिस्सा हैं। ये घास के मैदान पर्यावरण के स्वास्थ्य का सूचक माने जाते हैं, लेकिन हाल के दशकों में इनकी स्थिति लगातार खराब हो रही है। बुग्यालों का एक बड़ा हिस्सा बर्बाद हो रहा है, जिसका कारण केवल प्राकृतिक नहीं है, बल्कि इंसानों की लगातार बढ़ती गतिविधियों ने भी इन क्षेत्रों पर खतरा पैदा कर दिया है।
बुग्यालों का महत्व और स्थिति
उच्च हिमालय के ये घास के मैदान हिमालय इकोलॉजी का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। उत्तराखंड से लेकर अफगानिस्तान तक फैले वेस्टर्न हिमालय में कई बुग्याल क्षेत्र हैं। इन घास के मैदानों से निकलने वाली जलधाराएं ग्लेशियरों के पानी को औषधीय गुणों से भर देती हैं। लेकिन, लगातार दबाव, मृदा अपरदन, लैंडस्लाइड और बादल फटने जैसी घटनाओं ने बुग्यालों की स्थिति को गंभीर बना दिया है।
इंसानी दखल से बिगड़ रही स्थिति
बुग्यालों में इंसानी गतिविधियों जैसे पर्यटन के लिए कैंपिंग, चरवाहों द्वारा जानवरों को ले जाना, जड़ी-बूटियों का अवैध दोहन और प्लास्टिक कचरे का उपयोग भी इनके लिए खतरा बना हुआ है। जलवायु परिवर्तन के कारण घास के मैदान सिमट रहे हैं, जिससे बुग्यालों का प्राकृतिक संतुलन बिगड़ रहा है।
वन विभाग कर रहा उपचार कार्य
बुग्याल क्षेत्र का लगभग 10 प्रतिशत हिस्सा अब तक प्रभावित हो चुका है। इसे देखते हुए उत्तराखंड वन विभाग ने 83 हेक्टेयर क्षेत्र में उपचार कार्य शुरू किया है। इसके लिए इको-फ्रेंडली तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है, जिसमें जूट, पिरूल और बैंबू से मैदानों की मरम्मत की जा रही है। इस तकनीक से घास के मैदानों को पुनः हरा-भरा करने में सफलता मिल रही है।
नई तकनीक से मिल रहे बेहतर परिणाम
इको-फ्रेंडली तकनीक से न केवल बुग्यालों को सुरक्षित किया जा रहा है, बल्कि स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर भी प्रदान हो रहे हैं। उत्तराखंड के 13 डिवीजनों में इन बुग्यालों का संरक्षण और ट्रीटमेंट का काम तेजी से चल रहा है। वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि इस नई तकनीक के सकारात्मक परिणाम मिलने के बाद संरक्षण कार्य और तेज किया जाएगा।
निष्कर्ष
घास के ये मैदान न केवल हिमालयी इकोलॉजी का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, बल्कि नदियों और जलधाराओं के औषधीय गुणों के स्रोत भी हैं। लेकिन जलवायु परिवर्तन और इंसानी गतिविधियों के कारण इन पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। वन विभाग की ओर से बुग्यालों को बचाने के लिए उठाए गए कदम सकारात्मक दिशा में हैं, और आने वाले समय में इसके और भी बेहतर परिणाम देखने को मिल सकते हैं