उत्तराखंड सूचना आयोग में प्रशिक्षण कार्यक्रम का समापन

अधिकारियों को आरटीआई अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन के निर्देश

देहरादून। उत्तराखंड सूचना आयोग में चल रहे प्रशिक्षण कार्यक्रम का समापन राज्य सूचना आयुक्त योगेश भट्ट द्वारा किया गया। इस दौरान लोक सूचना अधिकारियों और विभागीय अपीलीय अधिकारियों ने आरटीआई अधिनियम के कार्यान्वयन में आने वाली व्यवहारिक समस्याओं पर चर्चा की।


मुख्य बिंदु और प्रशिक्षण के प्रमुख विषय

1. आरटीआई अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन पर जोर

  • अधिकारियों से अनुरोध पत्र और प्रथम अपील को सकारात्मक दृष्टिकोण से लेने का आग्रह।
  • सूचना का अधिकार अधिनियम को अतिरिक्त बोझ न समझें
  • नागरिकों को समय पर सूचना उपलब्ध कराने के लिए रिकॉर्ड प्रबंधन और कार्यालय प्रक्रियाओं में सुधार आवश्यक।

2. सूचना उपलब्ध कराने में आ रही प्रमुख चुनौतियाँ

  • नागरिकों द्वारा घुमा-फिराकर या बार-बार एक ही सूचना मांगना
  • भारी-भरकम सूचनाओं की मांग से सूचना देने में देरी
  • कार्यालयों में स्टाफ की कमी और रिकॉर्ड प्रबंधन की समस्याएँ
  • सूचना देने में प्रक्रियागत असमानता और अभिलेखों का उचित रखरखाव न होना

3. अधिनियम की धारा (4) और स्व-प्रकटन पर जोर

  • धारा (4) (1) (बी) के तहत मैनुअल को समय-समय पर अद्यतन (अपडेट) करने के निर्देश
  • वेबसाइट और अन्य माध्यमों से अधिकाधिक स्वतः सूचना सार्वजनिक करने पर जोर, जिससे आरटीआई आवेदनों की संख्या कम हो।
  • सूचना तक नागरिकों की स्वतः पहुंच सुनिश्चित करने की आवश्यकता

4. प्रशिक्षण कार्यक्रम में भागीदारी

  • 56 विभागों के 2500 से अधिक अधिकारियों ने भाग लिया।
  • 500 से अधिक अधिकारियों ने व्यक्तिगत रूप से तथा 2000 से अधिक अधिकारियों ने गूगल मीट के माध्यम से ऑनलाइन भाग लिया
  • टी.एस. बिष्ट, कुँवर सिंह रावत और वी.एम. ठक्कर ने अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों पर चर्चा की।

5. अधिकारियों की प्रमुख चिंताएँ और समाधान

प्रशिक्षण के दौरान अधिकारियों ने निम्नलिखित विषयों पर प्रश्न उठाए:

  • बार-बार सूचना मांगने वाले आवेदकों से निपटने की प्रक्रिया
  • भारी-भरकम सूचना मांगने पर उचित शुल्क की गणना और वसूली
  • निजी/व्यक्तिगत सूचनाओं की मांग और उनकी वैधता
  • ई-मेल और ऑनलाइन माध्यम से सूचना देने की प्रक्रिया

प्रमुख वक्तव्य और निर्देश

राज्य सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ने कहा कि सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 का प्रभावी क्रियान्वयन तभी संभव है जब लोक सूचना अधिकारी और विभागीय अपीलीय अधिकारी इसे जिम्मेदारी के साथ लागू करें। उन्होंने सभी लोक प्राधिकरणों को सूचना का अधिक से अधिक स्व-प्रकटन करने के निर्देश दिए, जिससे नागरिकों को सूचना मांगने की जरूरत ही न पड़े।

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